पदार्थ की वह अवस्था जिसका आयतन निश्चित हो लेकिन आकृति निश्चित न हो, वह द्रव्य या तरल कहलाती है।
जब कोई द्रव इस प्रकार प्रवाहित होता है कि किसी एक बिंदु से गुजरने वाली सभी गाने एक ही मार्ग का अनुसरण करते हैं, तत्वों का प्रवाह धारा रेखीय प्रवाह कहलाता है। इसमें परवाह के प्रत्येक बिंदु पर द्रव का वेग परिमाण तथा दिशा में नियत रहता है। इसमें द्वारा रेखाएं एक दूसरे को काटती नहीं है।
इसमें दरों का ऐसा प्रवाह है जिसमें प्रवाह के प्रत्येक बिंदु प्रदर्शित वेद परिमाण एवं वेग दिशा में अंचर नहीं रहता है, विक्षुब्ध प्रवाह कहलाता है। ऐसे प्रवाह में द्रव की वित्तीय अनियमित तथा टेडी मेडी रहती है।
किसी द्रव का पृष्ठ तनाव व है बल है, जोकि द्रव के मुख्य पृष्ठ पर किसी भी दिशा में खींची गई काल्पनिक रेखा की एकांक लंबाई पर पृष्ठ के तल में तथा रेखा के लंबवत कार्य करता है। इसका मात्रक न्यूटन\ मीटर तथा जुल\ मीटर है।
एक ही पदार्थ के अंगों के बीच लगने वाला आकर्षण बल को संसजक बल कहते हैं। जैसे दो बूंदों का मिलाकर एक बड़ी बूंद बनना।
भिन्न-भिन्न पदार्थों के अंगों के बीच लगने वाला आकर्षण बल को आसंजक बल कहते हैं, जैसे दिल की बूंद का कांच की प्लेट पर चिपकना।
द्रवों का वह गुण जिसके कारण द्रव अपनी विभिन्न परतों के बीच होने वाली अपेक्षा गति का विरोध करते हैं श्यानता कहलाती है।
न्यूटन के अनुसार, किसी बहते हुए द्रव की किन्हीं दो परतों के बीच लगने वाला शयान बल (F) दो बातों पर निर्भर करता है
यह बल पदों के क्षेत्रफल A अनुक्रमानुपाती होता है। अर्थात F A
यह बलों के बीच का वेग प्रवणता r = dv\dy
या η = r\dv\dy
जहां η एक शयानता गुणांक है। किसी द्रव का श्यानता गुणांक उस श्यान बल के बराबर है जो एकांक क्षेत्रफल वाली परतों के बीच कार्य करता है, जबकि उनके बीच के एकांक वेग प्रवणता हो
कम श्यानता वाले तरल अधिक सरलता से बहते हैं। पारे की श्यानता पानी से अधिक होती है तथा पानी की श्यानता वायु से अधिक होती है। एल्कोहल की श्यानता पारे से कम होती है।
CGS प्रणाली में = डायन- सेकंड/सेंटीमीटर2
MKS प्रणाली में = किलोग्राम- सेकंड/सेंटीमीटर2
अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली (SI) में = न्यूनतम- सेकंड/सेंटीमीटर 2
या N-s/m2 या Pa -S
सामान्यतया श्यानता की इकाई पाइज प्रयोग की जाती है।
पानी की श्यानता का मान लगभग 0.01008 पाइज होता है।
क्रांतिक वेग : द्रव के प्रवाह में काए के सामान जिसमें प्रभाव का वेग कम होने पर प्रभाव धारा रेखीय होता है तथा अधिक होने पर प्रवाह वीक्षुब्ध हो जाता है, इस सीमांत मान को क्रांतिक वेग कहते हैं।
आदर्श तरल – जो तरल असंपीड्य तथा आश्यान होता है, वह आदर्श तरल कहलाता है।
यदि किसी समान अनुप्रस्थ काट वाली नली से किसी आदर्श स्थल का धारा रेखीय प्रवाह हो रहा है, तो नली में प्रत्येक स्थान पर नदी की अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल (A) तथा द्रव का वेग (V) का गुणनफल नियत रहता है। यदि द्रव के बहने की अविरतता का सिद्धांत कहलाता है।
Av = नियांतक
जब कोई असंपीड्य तथा अशयान द्रव एक स्थान से दूसरे स्थान तक धारा रेखीय प्रवाह में प्रवाहित होता है, तो मार्ग के प्रत्येक बिंदु पर द्रव एकांक आयतन की कुल ऊर्जा (दाब ऊर्जा, गतिज ऊर्जा तथा स्थितिज ऊर्जा) का योग एक नियंताक होता है।
अंत: P + 1\2 pv + pgh = नियांतक
इसमें pg से भाग देने पर
p\pg + v2\2g + h = नियांतक
इसमें दाग P\pg शीर्ष, वेग शीर्ष v2\2g तथा h गुरुत्वीय शीर्ष है।
जब चैनल बैंड के उन्नयन में पाथ तथा घर्षण क्षती के बीच संतुलन होता है, तो प्रवाह एकसमान कहलाता है।
जब खुल्ले चैनल का मुख्य जल पृष्ठ चैनल के बैंड के समांतर नहीं होता है, तो प्रवाह असमान प्रवाह है कहलाता है।
चैनल का पृष्ठ जो कि उसमें से प्रवाहित जल के संपर्क में होता है, जलीय परिमाप कहलाता है।
चैनल के अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल (A) तथा जलीय परिमाप (P) का अनुपात द्रवीय औसत गहराई कहलाता है। अर्थात द्रवीय औसत गहराई m = A\P
जहां, P = जलीय परिमाप तथा A = अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल।
द्र्विय ढाल: घर्षण के कारण हैंड क्षति (hf) तथा चैनल की कुल लंबाई (i) का अनुपात हाइड्रोलिक ढाल या ग्रेडिएंट कहलाता है।
इसलिए हाइड्रोलिक डाल (i) घर्षण के कारण हेडक्षति/चैनल की कुल लंबाई
या (i) = hf\1
खुले चैनल की क्रांतिक गहराई
जब वेग क्रांतिक होता है या जब विशिष्ट ऊर्जा न्यूनतम होती है, तो जल की गहराई क्रांतिक गहराई कहलाती है। इस प्रकार, खुले चैनल की क्रांतिक गहराई
(he) = v2\g
h > v2\g
क्रांतिक प्रवाह
he = v2\g
वेग प्रवाही या शूटिंग प्रवाह h > v2\g
जहां, h = चैनल की गहराई
वियर और नीचे प्रवाह किधर मापने की काम आते हैं-
यह नहर या नदी के बीच बांध के रूप में एक रुकावट होती है जिसके ऊपर से होकर पानी का प्रवाह निरंतर बना रहता है।
नोच एक प्रकार की औरिफिस होती है जिसकी साइड की दीवारें द्रव की स्वतंत्र सतह से ऊपर उठी होती है। इसमें ऊपरी किनारा नहीं होता। नोट का प्रयोग डिस्चार्ज की कम मात्राओ को मापने के लिए किया जाता है।
वियर तथा नोच में सिद्धांत रूप से कोई अंतर नहीं होता। परंतु बियर का आकार बड़ा होता है और विसर्जन की अधिक मात्रा को मापने के लिए प्रयोग में लाई जाती है।
सिंपोंलेटीवियर यह एक समलम्बाकर वियर होती है जिसमें क्षैतिज से 4 ऊर्ध्वाधर की एक साइड ढलान होती है।
वियर से जल की अप्लावित होने वाली पर्त नैपी कहलाती है। नैपी निम्न तीन प्रकार की होती है-
मुक्त नैपी: जब नैपी की निचली भुजा के नीचे वायुमंडलीय दाब होता है, तो यह मुक्त नैपी कहलाती है।
अवनमित नैपी : जब नैपी के नीचे वायुमंडलीय दाब से कम दाब होता है, तो यह अवनमित नैपी कहलाती है।
आसंजीत नैपी : जब जल धारा वियर की अनुप्रवाह मुख्य से आसंजित होती है, तो आसंजीत नैपी कहलाती है।
द्रव चालित मशीने द्रव के प्रयोग से चलती है। इनमें प्रमुख जल प्रभाव और जल पंप है।
जल टरबाइन वह द्रव चालित मशीन है. जो पानी के दाब या गतिज ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करती है। जल टरबाइन में एक रनर होता है जो एक पहिए के समान होता है। रनर की परिधि पर अनेक वक्राकार फलक या वेन होती है।
इन फलकों में प्रवाहित होने पर पानी की गति तथा दिशा में परिवर्तन होता है। अंत्य पानी इन पलकों पर बल लगाकर इन्हें घुमाता है। रनर को घुमाने के पश्चात पानी रनर से बाहर आ जाता है।
जवानों का प्रयोग बड़े-बड़े विद्युत शक्ति केंद्रों पर होता है। प्रत्येक टरबाइन के अंदर की सॉफ्ट को विद्युत जनित्र की सॉफ्ट से जुड़ा देते हैं। इस प्रकार टरबाइन के रनर के साथ जनित्र की सॉफ्ट भी घूमने लगती है और जनित्र विद्युत शक्ति उत्पन्न करने लगता है।
स्टारब्वॉय में पानी की संपूर्ण पूजा को नोजल की सहायता से गतिज ऊर्जा में परिवर्तित कर लिया जाता है। इस प्रकार नोजल में से अधिक वेग से निकलने वाली पानी की जेट रनर की बकेटो पर बारी-बारी टकराती है।
अंतर बकेटों पर इप्लस या आवेग प्राप्त होता है, अजीत से वह आगे को चलती है और रनर पहिया घूमने लगता है। पहिया वायुमंडल दाब पर घूमता है तथा पहिए पर बहते समय पानी के दाब में कोई अंतर नहीं आता है।
जलाशय से पानी को टरबाइन तक पहुंचने वाले मार्ग को पेन-स्टॉक कहते हैं।
यह पानी का वह मार्ग है जो टरबाइन से निकलने के पश्चात पानी को ऐसे स्थान तक पहुंचाता है जहां उसे एक तर करके उचित प्रकार से आगे बढ़ाया जा सके अथवा पंप की सहायता से जलाशय में पहुंचाया जा सके।
3.प्रतिक्रिया या दाब टरबाइन: इस प्रकार के टरबाइन में प्रवेश करते समय पानी में गतिविधि तथा दाब दोनों प्रकार की ऊर्जाएं होती है। रनर दाब तथा गति दोनों प्रकार की ऊर्जाऑ से शक्ति प्राप्त करता है।
टरबाइन की विशिष्ट चाल (Ns) = N\P\H5\4
जहां N = रनर के चक्र प्रति मिनट
P= दाब
H = जल शीर्ष
विभिन्न प्रकार के टरबाइन (A) पैल्टन व्हील : एक स्पर्श रेखीय प्रवाह वाला आवेगी टरबाइन है। इसकी स्थापना ऐसे स्थानों पर की जाती है जहां पानी वह शीर्ष 250 मीटर से अधिक पर उपलब्ध होता है। क्योंकि यह शीर्ष पर कार्य करती है। अंत: इसे चलाने के लिए पानी की कम मात्रा की आवश्यकता होती है।
फ्रांसिस टरबाइन : फ्रांसिस टरबाइन एक मिश्रित प्रवाह प्रतिक्रिया टरबाइन है। इसमें द पर पानी, रनर की परिधि पर त्रिज्यत: प्रवेश करता है और केंद्र पर अक्षय ढंग से बाहर निकलता है। यह टरबाइन सामान्यतया पानी के मध्य शीर्ष 25 मीटर से 250 मीटर तक के लिए प्रयोग किया जाता है।
कप्लान टरबाइन : कप्लान टरबाइन भी फ्रांसिस टरबाइन की भांति 1 प्रतिक्रिया टरबाइन है। यह टरबाइन ऐसे जल विद्युत संयंत्र ओं में प्रयोग की जाती है जहां कम शीर्ष पर पानी से अधिक मात्रा उपलब्ध है।
जल पंप द्रविक युक्ति है जो जल को खींचने,उठाने, प्रदाय, कर लिया गतिमान करने के लिए प्रयोग की जाती है। पंप के तीन प्रमुख भाग होते हैं –
किसी भी दिए के पदार्थ के घनत्व तथ समान आयतन वाले 4 डिग्री सेल्सियस पर पानी के घनत्व के अनुपात को उस पदार्थ को आपेक्षिक घनत्व कहा जाता है।
‘जब किसी ठोस पदार्थ को पूर्णिया आशीक रूप से किसी द्रव में डुबाया जाता है, तो ठोस पदार्थ के बाहर में कमी उसके हटाए गए जल के भार के बराबर होती है।
शीघ्रता से आपेक्षिक घनत्व निकालने के लिए हाइड्रोमीटर का प्रयोग किया जाता है। यह तैरने के सिद्धांत पर कार्य करता है। यह दो प्रकार के होते हैं।
इसका प्रयोग दूध की शुद्धता मापने के लिए किया जाता है। यह तैरने के सिद्धांत पर कार्य करता है।
सभी तरल चारों और दबाव डालते हैं। तरल या द्र्वों द्वारा ऊपर लगाए गए बल को उतार बल कहते हैं।
सभी तेल पदार्थ किसी वस्तु पर डाला गया बल जो वस्तु को उठाए रखने का प्रयत्न करता, तैरने की शक्ति कहलाता है। इस उत्पलावक्ता भी कहते हैं।
हटाए गए द्रव के गुरुत्व को उछाल केंद्र कहते हैं।
किसी और की मीटिंग के सिद्धांत के अनुसार जब कोई वस्तु द्रव मैं डूबोई जाती है, तो उस पर उछाल बल कार्य करता है जिसके कारण है या तो वस्तु डूब जाएगी तोते रति रहेगी जो की वस्तु के घनत्व पर निर्भर करता है। इसकी 3 संभावनाएं हो सकती है।
1. यदि वस्तु का घनत्व द्रव के घनत्व से अधिक है, तो वस्तु डूब जाएगी। इस अवस्था में वस्तु का भार द्रव के उछाल बार से अधिक होता है।
2. यदि वस्तु का घनत्व द्रव के घनत्व के बराबर है, तो वस्तु द्रव के अंदर कहीं भी संतुलित अवस्था में रहेगी। वस्तु का भार द्रव के उछाल भार के बराबर होता है।
3. यदि वस्तु का घनत्व, द्रव के घनत्व से कम है, तो द्रव में पूर्ण रूप से डूबी हुई वस्तु पर लगने वाला उछाल बल वस्तु के भार से अधिक होगा। संतुलित अवस्था में वस्तु तैरती है।
किसी तैरती हुई वस्तु की संतुलित अवस्था में मूल उप्लावन केंद्र व गुरुत्व केन्द्र से निकलने वाली सरल रेखा तथा वस्तु के कोण विस्थापित हो जाने की अवस्था में नए उत्प्लावन केंद्र से निकालने वाली रेखा को कटान उप्लावन केंद्र कहलाता है।
किसी तैरती वस्तु के गुरुत्व केन्द्र G तथा उपला वन केंद्र के बीच की दूरी यां ऊंचाई (GM) को उत्प्लावन केंद्र की ऊंचाई कहते हैं।
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