किसी चल दृश्य को दूरी पर देखना दूरदर्शन कहलाता है। इसका अविष्कार अमेरिका के वैज्ञानिक जे एल बेयर्ड ने किया था। विश्व में सर्वप्रथम वर्ष 1936 में बी बी सी लंदन में व्यवसायिक टेलीकास्टिंग सेवा प्रारंभ की थी।
यदि किसी दृश्य को फोटोग्राफी 16 चित्र प्रति सेकंड की दर से की जाए और इसी दर पर चित्रों का पुनरुत्पादन किया जाए तो पर्दे पर हमें सचल दृश्य दिखाई देगा। इसका कारण है मनुष्य की दृष्टि दृढ़ता। मनुष्य के दृष्टि पटल पर प्रतिबंध किसी चित्र का प्रभाव 1\16 सेकेंड तक रहता है, इसलिए चित्रों को 16 चित्र प्रति सेकंड की दर पर प्रक्षेपित किया जाता है। व्यवसाई स्तर पर यह दर 25 चित्र प्रति सेकंड रखी जाती है जिसमें की दृश्य का पुनरुत्पादन लगातार सचल बना रहे।
टीवी प्रसारण अर्थात टेलीकास्टिंग के लिए दोहरा ट्रांसमीटर प्रयोग किया जाता है। इसका एक खंड AM प्रणाली में वीडियो संकेतों का प्रसारण करता है और दूसरा खंड FM प्रणाली में ऑडियो संकेतों का प्रसारण करता है। दोनों प्रकार के रेडियो संकेत एक ही एंटीना के द्वारा इंटरकरियर प्रणाली के द्वारा अंतरिक्ष में प्रेषित किए जाते हैं।
टीवी प्रसारण के लिए 7 MHz चौड़ी आवृत्ति चैनल की आवश्यकता होती है जबकि प्रसारण में सिग्नल साइड बेंड प्रणाली अपनाई गई हो। अत: आवृत्ति परास में टीवी प्रसारण केंद्रों की संख्या सीमित हो जाती है।
केवल प्रतिनिधि टीवी रिसीवर में हाइपर बैंड तकनीक प्रयोग करके चैनल्स (250 तक) देखने की व्यवस्था की जा शक्ति है।
30 MHz से अधिक आवर्ती की रेडियो तरंगों का प्रसारण सीधी तरंग संचरण प्रणाली के द्वारा किया जाता है। अत: भूतल पर टीवी संचार बीमा केवल 80 किलोमीटर तक होती है। परंतु माइक्रोवेव लिंक अथवा संचार उपग्रह के माध्यम से ही सीमा को पूर्ण भूमंडल तक विसतरण कर दिया जाता है।
यह सुपरहेटरोड़ाइन सिद्धांत पर आधारित है. AM + FM प्रकार का रिसीवर होता है। श्वेत श्याम दूरदर्शन रिसीवर में मुख्यतः निम्न पांच खंड होते हैं
FM ध्वनि रेडियो संकेत का पुनरुत्पादन उभयनिष्ठ वीडियो तथा साउंड एवं साउंड खंड के द्वारा संपन्न है। AM वीडियो रेडियो संकेतों का पुनरुत्पादन उभयनिष्ठ वीडियो तथा साउंड खण्ड वीडियो खंड एवं सिंक, तथा ई एच टी खंड के द्वारा संपन्न होता है। रेक्टिफायर खंड, अन्य सभी खंडों के लिए आवश्यक डीसी वोल्टता तैयार करता है।
FM तथा AM प्रकार के रेडियो संकेतों के लिए पृथक ई एफ़ तैयार की जाती है जो क्रमश 33.4 MHz तथा 38.9 MHz होती है। दोनों ईएफ का अंतर 5.5 MHz रखा जाता है। 5.5 MHz को टीवी रिसीवर की दूसरी आई एफ भी कहते हैं. साउंड खंड इसी दूसरी आई एफ से ध्वनि तरंगों का पर उत्पादन करता है।
वीडियो खंड का मुख्य घटक है- कैथोड-रे- ट्यूब या पिक्चर ट्यूब। इसमें मुख्यत एक इलेक्ट्रॉन गन, उर्ध्व एवं क्षैतिज विक्षेप कुंडलियां तथा प्रतिदीप्त पैदा होता है। इस ट्यूब का प्रयोग ओस्लोस्कोप में किया जाता है। टीवी रिसीवर की पिक्चर ट्यूब में एक प्लेट के स्थान पर विकसित कुंडलियां प्रयोग की जाती है जिन्हें इलेक्ट्रॉन पर बाहर से योग के रूप में स्थापित किया जाता है।
रंगीन टीवी रिसीवर 3 प्राथमिक रंगो लाल, नीला, हरा, पर आधारित होता है। इन तीन रंगों के मिश्रण से ही अनेक अन्य प्राप्त हो जाते हैं, जैसे- लाल 30%+ नीला 11% + हरा 59%= सफेद
लाल + हरा = पीला
लाल + नीला = मेहरून
नीला + हरा = आसमानी आदि
रंगीन टीवी प्रणाली में आईएफ तथा इंटर कैरियर आवृति के मान श्वेत श्याम टीवी प्रणाली के तुल्य ही रखे जाते हैं और 3 इलेक्ट्रॉन गन वाली पिक्चर ट्यूब प्रयोग जाती है। इसके अतिरिक्त रंगीन टीवी रिसीवर में क्रोमो नामक अतिरिक्त खंड होता है जो वीडियो प्रवर्धक इकाई के बाद होता है. शेष खंड श्वेत श्याम टीवी रिसीवर के समान होते हैं।
जिस व्यवस्था में रंगीन प्रसारण को श्वेत श्याम टीवी रिसीवर के द्वारा पुनः उत्पादन किया जा सके, कंपैटिबिलिटी कहलाती है। इस अवस्था के अंतर्गत चैनल की चौड़ाई, वीडियो बैंड विथ कैरियर फ्रीक्वेंसीज, आईएफ द्वितीय आईएफ लाइन फ्रीक्वेंसी, फ्रेम फ्रीक्वेंसी, फ्रेम सिक्रोंनाइजिंग फ्रीक्वेंसीज आदि का मान श्वेत श्याम प्रणाली के समान रखा जाता है।
सात इंद्रधनुषी रंगों की तरंग धैर्य भिन्न भिन्न होती है उसी कारण भिन्न-भिन्न रंग या ह्रयू पैदा होते हैं।
किसी रंग की शुद्धता ही उसकी संतृप्ता कहलाती है अर्थात उस में श्वेत रंग मिश्रित में हो।
किसी रंग की प्रकाश तीव्रता उसकी ल्युमिनेन्स कहलाती है।
किस रंग के संबंध में रंग एवं संतृप्तता की सूचना क्रोमिनेंस कहलाती है।
टीवी ट्रांसमीटर के जिस खंड में RGB रंगो की वीडियो संकेतों को निर्धारित अनुपात में मिलाया जाता है, वह एडर ड्रैमेटिक्स कहलाता है।
इस ट्यूब में 3 मूल रंगों लाल, नीला के लिए तीन इलेक्ट्रॉन-गन होती है। जब यह इलेक्ट्रॉन-बिम्स पर्दे पर आरोपित प्रतिदीपिप्त- बिंदु से टकराती है तो लक्ष्य के अनुरूप रंग का प्रकाश पैदा करती है। प्रतिदीप्त- बिंदुओं के त्रिभुजाकार समूह ट्रायोड्स कहलाते हैं। प्रत्येक ट्रायोड में RGB नामक 3 उत्सर्जित बिंदु होते हैं जो इलेक्ट्रॉन-बिम्स के टकराने क्रमश: लाल, हरा, नीला, प्रकाश उत्पन्न करते हैं।
पर्दे के बीच स्थापित शैडो मास्क कि यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक इलेक्ट्रॉन बीम अपने निर्धारित लक्ष्य प्रतिदीप्त बिंदु से ही टकराए।
आजकल बड़े व्यापारिक प्रतिष्ठानों, शोरूम वादी में चल रही गतिविधियों तथा कर्मचारियों के कार्य पर नजर रखने के लिए CCTV प्रणाली स्थापित की जाती है। इस प्रणाली में प्रतिष्ठान के विभिन्न स्थलों पर टीवी कैमरे स्थापित किए जाते हैं। यह सभी कैमरे नियंत्रण कक्ष में स्थापित मॉनिटर से जुड़े होते हैं। यदि मॉनिटर एक ही है तो प्रत्येक कैमरे के चित्रों का डिस्प्ले बारी-बारी से उस पर होता रहता है।
इसमें एंटीना अथवा केबिल से आर एफ टयूनर दिया जाता है। यह प्राय टिन-शीट से निर्मित आयताकार बॉक्स केंद्र स्थापित होता है जिसमें 5 से 6 पीने निकली हुई होती है।
यह एक और आर एफ़ ट्यून से संयोजित होता है। इसमें सर्वाधिक कुंडलियां (आई एफ ट्रेंस) होता है। और इसमें प्राय: CA 3088 आई सी प्रयोग की जाती है।
इस खंड से लाउडस्पीकर जुड़ा होता है। इसमें प्राय : TBA 1250 तथा CA 810 आईसी प्रयोग की जाती है।
यह पिक्चर ट्यूब से जुड़ा होता है और इसी खंड में कंट्रास्ट कंट्रोल से संयोजित होता है। इसमें प्राइस: BD 115 ट्रांजिस्टर तथा पिक्चर ट्यूब होती है।
इस खंड में इनपुट, वीआईएफ खंड से आता है और उसका आउटपुट खंडों वर्टी तथा हार्री में जाता है। इसमें प्राय: BC 158 दो ट्रांजिस्टर्स योग किए जाते हैं।
यह एक और तो सिंक खंड क्षेत्र था दूसरी ओर विकसित कुंडलियों से संयोजित होता है। इसमें प्राय दो ट्रांजिस्टर्स BD 115, BU दो TBA 920 आईसी प्रयोग किए जाते हैं।
यह एक और तो सिंक खंड से तथा दूसरी ओर विकसित कुंडलियों से संयोजित होता है। इसमें प्राय: TDA 1044 आईसी प्रयोग की जाती है।
यह खंड अन्य सभी खंडों को आवश्यक दिशा प्रदान करता है। इसमें कई ट्रांजिस्टर्स एवं डायोड प्रयोग किए जाते हैं।
इसमें डाटा केबल से आर एफ़ इनपुट दिया जाता है। यह प्राय टिन-सीट से निर्मित आयताकार बॉक्स के अंदर स्थापित होता है जिसमें पांच से छह से पीने निकली हुई होती है।
इसमें सर्वाधिक कुंडलियां (वेब ट्रेंस) अथवा SAW फिल्टर प्रयोग किए जाते हैं। इसमें प्राय: TA 7607 AP आईसी प्रयोग की जाती है।
इस खंड से लाउडस्पीकर जुड़ा हुआ होता है। इसमें प्राय: TA 7176 आईसी तथा 2SC 2073 ट्रांजिस्टर्स प्रयोग किए जाते हैं।
यह पिक्चर ट्यूब से जुड़ा होता है और इसी खंड में कंट्रास्ट कंट्रोल संयोजित होता है। इसमें प्राय: ट्रांजिस्टर्स KSA 733, KSC 90045, KSA 642 तथा 2SC 2068 ट्रांजिस्टर प्रयोग किए जाते हैं( R-G-B आउटपुट)
इसमें प्राय TA 7609 आईसी प्रयोग की जाती है। इनपुट वी आई एफ खड से आता है और इसका आउटपुट हॉरिजॉन्टल तथा वर्टिकल खंडो को जाता है जो आई सी में बने हुए होते हैं।
इसमें प्राय TA 7193 AP आईसी प्रयोग की जाती है। इस खंड में रंगो से संबंधित कई प्रकार के परिपथ हैं।
इसमें प्राय: 2SC 2068 है, 2SC 894 ट्रांजिस्टर प्रयोग किए जाते हैं। इस खंड का आउटपुट विक्षेपक कुंडलियों को दिया जाता है और इसी से ई एच टी संयोजित होता है।
इसमें प्राय: 2SC 2299, 2SC 207, 2SC 940 ट्रांजिस्टर प्रयोग किए जाते हैं। इसका आउटपुट वर्टिकल विक्षेपक कुंडलियों में जाता है।
इसमें प्राय 2SC 1829, 2SC 2120, 2SC 2229 ट्रांजिस्टर तथा कई ट्रायोड्स प्रयोग प्रयोग किए जाते हैं। यह खंडहर अन्य सभी खंडों को आवश्यक डीसी वोल्टेज प्रदान करता है।
सर्वप्रथम टीवी रिसीवर का स्विच ऑन कर के उसके प्लग -टॉप की दो मुख्य पिनों के बीच मल्टीमीटर से प्रतिरोध नापे।
यदि प्रतिरोध शून्य हो तो रिसीवर को मुख्य स्रोत से कदापि ना जोड़ें। प्रतिरोध का मान 500 ओह्रा से अधिक होना चाहिए। प्रतिरोध शून्य होने पर रिसीवर के अंदर शॉट- सर्किट हुए मेन लीड संधारित्र, डायोड आदि की खोज करें। दोषी पुर्जों को बदलकर जब प्रतिरोध 500 ओह्रा से अधिक प्राप्त हो जाए तभी उसे मुख्य स्रोत से जुड़े।
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