हिमाचल प्रदेश के लोग जश्न के किसी भी अवसर का स्वागत करते हैं। पूरे प्रदेश में अनगिनत मेलों एवं त्यौहारों को बड़े उत्साह से मनाने के लिए यहां इसका आयोजन किया जाता है। लगभग हर गांव में एक मेला लगता है। गांव के संयोग के लिए भी मेले लगते हैं और फिर पूरे क्षेत्र या पूरे जिले के लिए और बड़े मेरे लगते हैं। अधिकांश मिले धार्मिक होते हैं, लेकिन कुछ सामुदायिक और व्यापारिक मेले लगते हैं। हर मेले का अपना एक उद्देश्य होता है, मूलत: के सामाजिक मिलन या व्यापारी के जमाव का अवसर बन जाता है। स्थानीय देवता की उपासना के अलावा जोड़े बनाए और विवाह किए जाते हैं। कारीगरों और किसानों की वस्तुएं बिकती है। स्त्री पुरुष अपने सबसे सुंदर वस्त्र पहनकर पहाड़ियों के कगारों पर बैठकर और रंगो का मेला प्रस्तुत करते हुए कुश्ती के मुकाबले या नाच और गाने देखते रहते हैं जो निरंतर चलते रहते हैं। हिमाचल प्रदेश के प्रमुख मेले, पर्व, त्यौहार निम्नलिखित है-
त्यौहार/पर्व
चैत सक्रांति
यह पर्व नववर्ष के शुभ पर आगमन के उपलब्ध में मनाया जाता। इस पर्व पर कांगड़ा, मंडी, चंबा, हमीरपुर आदि जिलों में निम्न जाति (डूम) के लोग घर-घर जाकर नवर्ष के स्वागत में मंगल गीत गाते हैं। इसी महीने (मार्च के मध्य) चतराली, चातरा अथवा ढोलरू पर्व मनाए जाते हैं। ढोलरू पर्व भरमौर में मनाया जाता है।
वैशाखी
हिमाचल प्रदेश में बैसाखी का पर्व/त्यौहार 3 अप्रैल को मनाया जाता है। शिमला मैं विसु या बिस्सा,किन्नौर में बीस, पागी में लिसु एवं कांगड़ा में बसोआ आदीनामों से यह त्यौहार मनाया जाता। कांगड़ा में नवविवाहित दुल्हनिया बैसाखी से पूर्व नवरात्रे से रली और रल्ला की पूजा की जाती है। बैसाखी से दिन पहले रली और रल्ला की शादी कर दी जाती है। वैशाखी के दिन इन मूर्तियों को नदियों में प्रवाहित (विसर्जित) कर दिया जाता है।
नहोले का त्यौहार
यह हिमाचल प्रदेश का स्थानीय त्यौहार है, जो प्राय: कांगड़ा, मंडी, हमीरपुर एवं चम्बा जिलों में जयेष्ठ के महीने में मनाया जाता है।
चीडनी का त्यौहार
हिमाचल प्रदेश में यह त्यौहार राज्य के चंबा, कांगड़ा, हमीरपुर, ऊना, एवं मंडी जिलों में मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त यह त्यौहार प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में भी लोकप्रिय है। किन्नौर एवं जुब्बल में इस त्यौहार को ख्रेण एवं लाहौल स्पीति मैं इस त्यौहार को सोग्तसुम के नाम से पुकारा जाता है। यह त्यौहार श्रावण मास की सक्रांति के दिन पर जुलाई के मध्य पड़ता है।
चेरबाल
यह त्यौहार भादो माह से प्रारंभ है होता है तथा पूरे माह में मनाया जाता है। इस त्यौहार पर मिट्टी की परत परत जमा कर एक आकार बनाया जाता है। जिसे चिड़ा कहा जाता है। इसकी विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है। कुल्लू में इस त्यौहार को भद्राजो एवं चम्बा में पथेड़ कहते हैं। इस मौके पर चंबा जिले के लोग पथौड नामक पकवान बनाते हैं।
फुलेच
यह त्यौहार सितंबर माह में मनाया जाता है। इसे फूलों का त्योहार भी कहा जाता है। किन्नौर के लोग इस त्यौहार को बड़ी धूम-धाम से मनाते हैं। इस त्यौहार को उख्यांग नाम से भी पुकारा जाता है।
सैर
यह त्यौहार अशोक महीने की संक्रांति के दिन (सितंबर के मध्य) मनाया जाता है। यह त्यौहार प्रदेश भर में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
भूडा एवं शांन्द
इस त्यौहार को खस जाति के लोगों द्वारा हर 12 वर्ष बाद मनाया जाता है। कुल्लू के निर्मड का भून्ड उत्सव प्रसिद्ध है। इस दिन भगवान परशुराम की पूजा-अर्चना की जाती थी। पूर्व समय पर नर बलि दी जाती थी, लेकिन अब यह नहीं दी जाती है। इसके अतिरिक्त नाग पंचमी, विजयदशमी, दीपावली, लोहारी, शिवरात्रि, नवाला त्यौहार भरमौर के गद्दी के लोगों द्वारा बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है।
प्रमुख मेले
भरमौर जातरा
गदरी लोगों के यह मेले कृष्ण जन्माष्टमी के दिन शुरू होते हैं। यह मैंने भगवान शिव शंकर को समर्पित होते हैं। यह मेले 6 दिन तक चलते हैं।
बाबा बालक नाथ का मेले
यह मेले मार्च-अप्रैल एवं मई माह में बाबा बालकनाथ (दियोट सिद्ध) में लगते हैं॥
छितराड़ी जात्रा
यह मेला राज्य के चंबा जिले में सितंबर माह में लगता है।
सुई का मेला
यह मेला चंबा शहर में लगता है। इस मेले की विशेषता यह है कि इसमें सिर्फ स्त्री एवं बच्चे ही भाग लेते हैं। यह मेला 11 से 13 अप्रैल तक चलता है।
नलवाड़ी मेला
यह मेला मार्च में बिलासपुर में आयोजित किया जाता है यह एक पशु मेला है।
डूंगरी मेला
यह मेला मई के महीने में मनाली में आयोजित किया जाता है। यह मेला देवी हडिंबा को समर्पित है।
मारकंडे मेला
यह मेला बिलासपुर में 12 से 14 अप्रैल तक आयोजित किया जाता है।
गोगा मेला
यह मेला अगस्त अंबर में रक्षाबंधन के बाद नौवें दिन लगता है। इस गुगा नवमी भी कहा जाता है। यह मेला प्रदेशभर में लगता है।
सोलन मेला
इसका आयोजन जून महा में किया जाता है।
सारी मेला
इस मेले का आयोजन सोलन जिले के अर्की में जुलाई-मई में किया जाता है।
झोटे का मेला
इस मेले का आयोजन शिमला के नजदीक मशोबरा में किया जाता है। इस मेले का मुख्यकर्षण झोटो (भैंसों) की लड़ाई है। इस मेले का आयोजन मूल रूप से अर्की में किया जाता है।
सीपी मेंला
इस मेले का आयोजन मई माह में मसोवरा के निकट सिपुर में किया जाता है।
पत्थर का खेल
इस मेले का आयोजन शिमला से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है चलो गांव में दीपावली के ठीक दूसरे दिन किया जाता है।
लद्राचा का मेला
इस मेले का आयोजन किन्नर (काजा) में जुलाई अगस्त माह में किया जाता है।
बावन द्वादशी
इस मेले का आयोजन राजबली की याद में किया जाता है। सितंबर माह में यह मेला नाहन में लगता है।
फूल जातरा
इस मेले का आयोजन 8 अक्टूबर माह में किलार एवं पानी में किया जाता है।
हरि तालिका
यह मेला भादो माह में आयोजित किया जाता है जो भगवान एवं शिव पार्वती को समर्पित है ।
होली
टिहरा की होली संपूर्ण राज्य में विख्यात है।
बाबा बड़भाग सिंह मेला
इस मेले का आयोजन राज्य के उन्नाव जिले के मेडी नामक स्थान पर किया जाता है।
मिंजर मेला
इस मेले का आयोजन चंबा में श्रावण मास (जुलाई) के दूसरे रविवार से शुरु होकर अगले रविवार तक चलता है। इस मेले की शुरुआत चंबा शहर के संस्थापक साहिल भ्रमण (920- 940 ए. डी.) के शासनकाल में हुई।
लंबी का मेला
देश का प्रसिद्ध मेला शिमला जिला के रामपुर में आयोजित किया जाता है। 3 दिन तक चलने वाला यह मेला नवंबर माह में लगता है।
कुल्लू का दशहरा
विश्व प्रसिद्ध कुल्लू दशहरा विजयदशमी दशहरा के दिन शुरू होता है एवं 7 दिन तक चलता है। इस दिन कुल्लू के राजा जगत सिंह (1637- 1672 ए. डी.) ने अपना राजपाट भगवान रघुनाथ (राम) केनाम समर्पित है किया था।
मंडी का महाशिवरात्रि मेला
मंडी का महाशिवरात्रि मेला राज्य भर में प्रसिद्ध है। मंडी के राजा सूरज सिंह के 18 पुत्र थे और सभी की मृत्यु होने पर 1648 एचडी में सूरत सिंह ने राजगद्दी माधव (भगवान श्री कृष्ण) को समर्पित कर दी। उसी दिन से इस मेले का आयोजन किया जाता है।
प्रमुख पर्व/ त्यौहार
- चेत्री पर्व त्यौहार
- चेत्रोंल
- बसोआ अथवा बीशु
- मीजर
- राखदुन्नी (राखी)
- गुगानौमी त्यौहार
- लोसर त्योहार
- सैरी त्यौहार
- दीपावली
- धौली त्यौहार
- खौगल त्यौहार
- गोत्सीय गोची
- दशहरा
- करवाचौथ
- खैपा
- मघनौण
- लोहड़ी
- होली
- फागुली
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