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हिमाचल प्रदेश ऐतिहासिक दर्शन

हिमालय की तराई में स्थित हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक सौंदर्य से रसा-वसा पहाड़ी प्रदेश, है हिमालय की इन्हीं तराइयों में मोन खामोर (किरात) एवं अन्य जातियां आर्यों द्वारा प्रताड़ित होने के कारण निर्वासित (छुपकर) जीवन व्यतीत कर रही थी। सांभर इनका बड़ा वीर एवं प्रतापी राजा था। यह माना जाता है कि किरात जाती ऋग्वैदिक काल में भी आबाद थी।

ईसा से पूर्व दूसरी शताब्दी में यह समुचा हिमालय किरात भूमि किन्नर था।  इसका प्रमाण प्रसिद्ध बैजनाथ शिव मंदिर में मिले शिलालेख से मिलता है। जो शारदा लिपि में है। इसमें इस बस्ती का नाम कीरग्राम या किरात ग्राम मिलता है।

ये लोग लाहौल स्पीति, चंबा, पांगी एवं अन्य पहाड़ी तराइयो में बसे हैं। कुल्लू में मलाणा गांव में किरातों के बसने के स्पष्ट प्रमाण आज भी सहज सुलभ है।

हिमाचल प्रदेश के आदिम जातिया क्षेत्रों में अब प्रागैतिहासिक कालीन सामाजिक एवं सांस्कृतिक मान्यताओं के दर्शन होते हैं। यहां की किरात, किन्नर, यक्ष, नाग आदि प्रागैतिहासिक जातियां एवं महत्वपूर्ण आदिम जातियों में से है। जिनका संबंध इतिहास, पुराण-संहिता में निरंतर मिलता है, हिमाचल एक प्रागैतिहासिक प्रदेश है, जिसका मानव जाति की विकास परंपरा में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।

भौगोलिक दृष्टि से इस प्रदेश को त्रिगर्त भी कहा गया है, जो प्राकृतिक सीमाऑ के कारण पंजाब के मैदानों से पृथक था। इसमें छह जनपद थे। त्रिगर्त पष्ठ को जालधारणय भी कहा गया है।  चंबा, कुल्लू, मंडी बिलासपुर, कांगड़ा एवं सिरमौर के क्षेत्र में इसी में आते हैं। पर्वतीय क्षेत्र में त्रिगर्त प्रसिद्ध था।  इस आयुद्ध संघ का नाम भी दिया था। जो छह राज्यों का संघ था।

हिमाचल प्रदेश में मानव के आरंभिक पहचान योग्य अवशेष 1955 में पाए गए जब कांगड़ा, कुलेर, और देहरा में सोहन प्रकार के पुराणपाषाण कालीन औजार मिले हैं। विकास के विभिन्न चरणों में बने यह औजार ही भारत में सबसे पहले पाए जाने वाले औजार थे। यद्यपि बटवारे के पहले ऐसे औजार सोहन घाटी में पाए गए जो पाकिस्तान में है। 40000 साल पुराने लगने वाले यह औजार इस क्षेत्र में रहने वाले मानव और उसके पर्यावरण पर प्रकाश डालते हैं।

  • भीम ने मनाली के पास के क्षेत्रों के विजय की दौरान एक राक्षसी राजकुमारी हिडिंबा से विवाह किया था.
  • ओदम्बरों को महाभारत में (कौशिक गोत्र) विश्वामित्र का वंशज कहा गया है। यह एक शक्तिशाली कबीला था और, उसके सिक्के पठानकोट, कांगड़ा के ज्वालामुखी क्षेत्र और होशियारपुर जिले में पाए गए हैं।
  • कुलूट का वर्णन महाभारत, रामायण और विष्णु पुराण में हुआ है। यह क्षेत्र ऊपरी व्यास वादी (अब कुल्लू वादी) में स्थित है। इसकी राजधानी नागर थी।  कुल्लू वादी से मिले कुलूटो के तांबे के सिक्के उनके शासनकाल पर प्रकाश डालते हैं।
  • कुलिंदों का वर्णन महाभारत और पुराणों में मिलता है। इनको आगे चलकर कुनिद कहा जाने लगा। इनका गणराज्य व्यास और यमुना नदी के बीच के पहाड़ी क्षेत्र में फला-फूला। अब यह संभवत: शिमला और सिरमोर क्षेत्रों में पड़ेगा
  • कुलिंद गणराज्य दूसरी सदी ईसा पूर्व में फला-फूला आज कनेत ने संभवत कूलिंद के ही वंशज है।
  • मौर्य साम्राज्य के पतन के पश्चात हिमांचल क्षेत्र के गणराज्यों ने फिर से खुद को संगठित किया। उनमें कुछ गणराज्यों जैसे कुलिंद ने अपने सिक्के जारी किए।
  • ओदम्बर और त्रिगर्त षष्ठ जैसे कुछ गणराज्य बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। त्रिगर्त षष्ठ अनेक भागों में बंट गया था और इसकी ब्राह्यगुप्त जैसी कुछ इकाइयां एक पृथक स्वतंत्र प्रदेश है (ब्रह्मपुर) बन चुकी थी।
  • हेनसांग के अनुसार कुल्लू का घेरा कोई 75 मिल था और चारों तरफ ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ था। 500 ई. में इस पर राजा ब्रह्मपाल का शासन था।
  • राजा वीर सेन ने 1288 ई. में सुकेत की स्थापना की। उसके भाई गिरिसेन ने क्योंबल की स्थापना की।
  • मंडी राज्य सुकेत से ही टूट कर बना था। इसे 14वीं सदी में वनसेन ने स्थापित किया था। मंडी नगर की स्थापना अजमेर सेन ने 1527 ई. में की थी।
  • नलगढ़ बिलासपुर से ही टूटकर बना था। इसकी केहलूर के राजाओ के एक वंशज अजयचंद ने की थी।
  • सिरमौर की स्थापना जैसलमेर के राजा सालवाहन के पुत्र राजा रसालू ने की थी। सिमूरी ताल इसकी राजधानी थी जो 12वीं सदी में गिरीनदी की बाढ़ में बह गई थी।
  • 1019 ईस्वी में मह्मुद गजनवी ने कांगड़ा पर हमला किया था मंदिरों की मूर्तियों को तोड़ा और अपार धन लूटकर गजनी वापस चला गया।
  • 1337 ईस्वी में महमूद बिन तुगलक ने नगरकोट के किले को जीता मगर उसके शासन के अंतिम वर्षों में यह किला दिल्ली के अधिकार से निकल गया।
  • मुगल सम्राट जहांगीर ने नगरकोट के अभेद्य (अजय)  दुर्ग का घेरा डाला और वहां की सेना ने भूखों मरने के बाद समर्पण कर दिया। यह गहरा 14 माह तक चला और नवंबर 1620 में समाप्त हुआ। राजा की सेना ने अपने भारी खजाने के साथ समर्पण किया।
  • हिमाचल क्षेत्र में सर्वप्रथम घमंड चंद कटोच ने विद्रोह किया और अपने पूर्वजों के क्षेत्र कांगड़ा पर कब्जा कर लिया।
  • घमंड चंद को सिख मिसल के प्रमुख जस्सा सिंह ने हराया और 1770 में कर देने के लिए मजबूर किया।
  • 1914-15 के दौरान मियां जवाहर सिंह, खरीगढ़ के राणा और दूसरे लोगों को मंडी में गदर पार्टी की शाखा गठित करने के आरोप में लंबी-लंबी कैद की सजा दी गई थी।
  • 15 जुलाई 1939 को  धामी ( शिमला से 18 मील दूर एक छोटी सी रियासत) के प्रजामंडल ने प्रस्ताव पारित करके शासक से प्रार्थना की कि बेकार को समाप्त किया जाए।  फसल बर्बाद होने पर मालगुजारी में 50% छूट दी जाएगी।
  • 1857 में शिमला हिल स्टेट्स के राजाओं का योगदान न बराबर रहा।
  • 1847 में नालागढ़ में वजीर गुलाम कादिर के विरुद्ध विद्रोह भड़क उठा।
  • 1880 ई. में सिरमौर में आंदोलन हुआ, अंग्रेजों के विरुद्ध आवाज उठाने बालों में सर्वप्रथम पंजाब हिल स्टेट के राजाओं में कांगड़ा एवं नूरपुर के नाम आते हैं।
  • 1857 ई. के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में शिमला पहाड़ी की सभी रियासतों ने अंग्रेजों का काफी विरोध किया। इस इलाके में अंग्रेज अधिकारियों, व्यापारियों आदि का घोर विरोध हुआ और उन्हें इस क्षेत्र से पलायन करने पर मजबूर कर दिया गया।
  • 1849 ई. में बुशहर के राजा शमशेर सिंह ने अंग्रेजी हुकूमत को नजराना देना बंद कर दिया।
  • 10 जून, 1857 को जालंधर से कुछ आजादी के दीवाने सतलज नदी पार कर नालागढ़ में प्रविष्ट हुए और सरकारी खजाना लूटकर वे पहाड़ों के रास्ते सीधे दिल्ली की ओर बढ़ गए। नालागढ़ विद्रोह को दबाने के लिए शिमला से कमिश्नर विलियम हेय ने कैप्टन ब्रिगज और बाघल के मियां जयसिंह को भेज दिया।
  • 20 जून 1857 तक नालागढ़ का विद्रोह पूर्ण रूप से दबा दिया गया और और वहां पुन: ब्रिटिश शासन स्थापित कर दिया गया।
  • 1857 की क्रांति में कांगड़ा, चंबा और मंडी के लोगों ने विशेष उत्साह प्रदर्शित नहीं किया।
  • सुकेत जन आंदोलन- 1862-76 ई. के बीच सुकेत के लोगों ने वजीर के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल बजा दिया। विद्रोह तब ही शांत हुआ जब वजीर नरोत्तम को हटा दिया गया।
  • नालागढ़ आंदोलन- 1877 में राजा ईश्वर सिंह के शासनकाल में हुआ। विद्रोह कर कारण प्रजा पर नए कर लगाना था।
  • सिरमोर का भूमि आंदोलन- 1878 में सिरमौर का भूमि आंदोलन शुरू हुआ। इस आंदोलन की विशेष बात यह रही कि प्रजा को राज्य की वास्तविक नीति समझ में न आने के कारण यह आंदोलन हुआ।
  • चंबा का किसान आंदोलन- 1895 ई. में हुआ आंदोलन का कारण भूमि लगान का भारी कर था इसके साथ-साथ बेगार का लिया जाना भी एक कारण था।
  • बाघल में भूमि आंदोलन- 1897 ई. में यह आंदोलन हुआ इसका भी कारण भूमि में अधिक लगाना था।
  • क्योंठल का भूमि आंदोलन- 1897 ई. में क्योठल रियासत में भी भूमि आंदोलन हुआ। यहां के लोगों ने लगान और बेगार देना बंद कर दिया था।
  • ठियोगा और बेजा में आंदोलन- 1898 ई. में बेजा और ठियोग ठकुराइयों में भी विद्रोह कि ज्वाला धधक उठी। बेजा के लोगों ने ठाकुर के विरुद्ध आंदोलन का रास्ता पकड़ा 1989 में दूसरा आंदोलन ठियोग में ठाकुराई में बंदोबस्त में गड़बड़ी के फलस्वरुप चलाया गया।
  • बाघल का विद्रोह- 1905 ई. में बगल में पुन: विद्रोह भड़क उठा जनता ने शासकों व उसके भाई के विरुद्ध जंग का ऐलान कर दिया। विद्रोह का कारण बढा हुआ लगान न देना की वजह रहा। अंत में अंग्रेजी फौजों ने इस विद्रोह का दमन कर दिया।
  • डोडारा क्वार में विद्रो- 1906 ई. में डोडारा क्वार में विद्रोह हुआ। उस समय यह क्षेत्र राजा की ओर से किन्नौर गांव पवारी के वंशानुगत वजीर परिवार के रण बहादुर सिंह के हाथों में  था। रण बहादुर ने राजा के विरुद्ध विद्रोह कर दिया और डोडारा क्वार को अपने अधिकार में करने की कोशिश की। इस कार्य में स्थानीय जनता ने उसका साथ दिया। अंत में 1906 ई. में शिमला की पहाड़ी रियासतों के अंग्रेज अफसरों के आदेश पर उसे पकड़ लिया गया।  कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई।
  • मंडी का किसान आंदोलन- 1909 ई. में मंडी के राजा भवानी सेन के समय किसानों ने आंदोलन चलाया। आंदोलन चलाने का कारण रियासत के वजीर जीवानंद के अत्याचार, भ्रष्टाचार और आर्थिक शोषण से जनता को त्रस्त  होना था।
  • कुनिहार का किसान आंदोलन- 1920 ई. में कुनिहार रियासत में किसानों द्वारा प्रशासन के शोषण पूर्ण अत्याचार से तंग होकर आंदोलन का मार्ग अपनाया।  रियासत की सरकार ने अंग्रेजों की मदद से इस आंदोलन का बल पूर्वक नमन कर दिया।
  • सुकेत का जनआंदोलन- 1924 ई. में पुन: अधिक लगान लेने एवं बेगार करने के कारण जनता ने जन आंदोलन का मार्ग अपनाया।
  • सिरमौर का जनआंदोलन -1929 ई. में अनुचित भूमि बंदोबस्त के विरुद्ध आंदोलन चलाया।  रियासत की सरकार ने अंग्रेजों की मदद से इस जनआंदोलन को बलपूर्वक दबा दिया।
  • बिलासपुर आंदोलन- 1930 ई. में पुन: भूमि बंदोबस्त को लेकर जनआंदोलन इस आशंका के कारण हुआ कि इसमें भूमि लगान व अन्य कर बढ़ सकते हैं। इस आशका के चलते जनता ने आंदोलन का मार्ग अपनाया।
  • समझोता का किसान आंदोलन- 1942-43 ई. में सरकार ने रियासत से बाहर अनाज बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया और किसानों को आदेश दिया कि अपने पास थोड़ा अनाज रखें बाकी अनाज सरकारी कोऑपरेटिव सोसाइटी को बेच दें। इसके अलावा रियासत के राजा ने अनेक अनुचित कर भी जनता के ऊपर थोप दिए थे। इन सब अनुचित सरकारी आदेशों व बेगार बोझ से बेहाल होकर किसानों ने आंदोलन का रास्ता बनाया।

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