हिमाचल प्रदेश में भारत छोड़ो आंदोलन

  • शिमला, कांगड़ा और यहां के अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में बड़े जोश तथा अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारे के साथ आंदोलन जलसे-जुलूसों के बड़े पैमाने पर आयोजन शुरू हो गए।
  • शिमला से ही राजकुमारी अमृत कौर ने भारत छोड़ो आंदोलन का संचालन बड़ी सूझ-बूझ के साथ किया। गांधीजी जब जेल चले गए तब उनकी पत्रिका हरीजन का संपादन कार्य भी वह करती रही।
  • शिमला के इस भारत छोड़ो आंदोलन में यहां की पहाड़ी रियासतों की जनता ने बढ़-चढ़-कर हिस्सा लिया।
  • मई 1944 ई. को महात्मा गांधी जब जेल से मुक्त किए गए तत्पश्चात हिमाचल के समस्त नेताओं व कार्यकर्ताओं को अंग्रेजी सरकार ने मुक्त कर दिया।
  • 25 जून, 1945 ई. को लार्ड वेवल ने भारतीय राजनीतिक दल के नेताओं को शिमला में वार्ता हेतु आमंत्रित किया।
  • 4 जुलाई 1945 ई. को वायसराय लॉर्ड वेवल की घोषणा के साथ सम्मेलन समाप्त हो गया। इस सम्मेलन से एक लाभ अवश्य हुआ कि शिमला से ही भारतीय स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त हो गया।
  • मई 1946 ई. में इंग्लैंड से एक कैबिनेट मिशन भारतीय नेताओं से वार्ता करने हेतु भारत आया। इस बार भारतीय नेताओं और वह सारे लॉर्ड वेवल तथा कैबिनेट मिशन की बैठक 7 दिनों तक शिमला में चलते रही। मुस्लिम लीग की हठधर्मिता के कारण इसे आशा के अनुरूप सफलता न मिल सकी, लेकिन वह सारा ईवेबिल अंतरिम सरकार बनाने में सफल हो गए बाद में मुस्लिम लीग के नेताओं ने सरकार में शामिल होने में ही अपनी भलाई समझी और वेवल को सरकार में शामिल होने की स्वीकृति दे दी।
  • 17 दिसंबर, 1927 को ऑल इंडिया स्टेट पीपुल कॉन्फ्रेंस (अखिल भारतीय रियासती प्रजा परिषद) का गठन किया गया। इसका प्रथम अधिवेशन भी 1927 ई. में हुआ
  • हिमाचल रियासत प्रजामंडल को सुसंगठित करने के लिए 1930 ई. में प्रयास शुरू किए गए। धीरे-धीरे प्रजामंडल की शाखाएं लगभग सभी रियासतों में स्थापित हो गई। पहाड़ के निवासी एक झंडे के नीचे एक उद्देश्य को लेकर आजादी और न्याय के लिए संगठित हो गए।
  • हिमाचल रियासत प्रजामंडल भी अखिल भारतीय कांग्रेस के अंग के रुप में स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद गया। उधर जनता में जनजागृति पैदा हो रही थी।
  • 13 जुलाई 1939 ई. को पहाड़ी रियासती प्रजामंडल धीमी (हिमाचल) के प्रसिद्ध नेता भागमल सोहण की अगुवाई में धीमी के 600 कार्यकर्ताओं की बैठक में एक प्रस्ताव द्वारा धामी के राणा से मांग की गई कि वह स्थानीय जनता के प्रतिनिधियों को सरकार में शामिल करें और आधा कर समाप्त करने की घोषणा करें।
  • जनवरी 1940 ईस्वी में हिमालयन हिल स्टेट रीजनल काउंसिल के नाम से एक संस्था की स्थापना की गई संस्था के अध्यक्ष स्वामी पूर्णानंद बनाए गए और उनका कार्यालय मंडी में स्थापित कर दिया गया।
  • हिमालय इन हिल स्टेट सिग्नल काउंसिल का प्रथम सम्मेलन 8 से 10 मार्च 1946 ईस्वी में संपन्न हुआ। पहाड़ी रियासतों में सम्मेलन से यहां के जनमानस में राजनीतिक में जनजागृति का तेजी से विकास हुआ।
  • 31 अगस्त व 1 सितंबर 1946 ई. में हिमाचल हिल स्टेट्स रीजनल काउंसिल का सम्मेलन नाहन सिरमौर (हिमाचल) में संपन्न हुआ। इस सम्मेलन में सिरमौर रियासत में आश्चर्यजनक ढंग से लोगों में जागृति पैदा कर दी। जिससे यहां की रियासत कि सरकार की नींद हराम हो गई।
  • 11 फरवरी 1947 ई. को लीला दास वर्मा, काशीराम उपाध्याय बिलासपुर और प्रजामंडल के अन्य कार्यकर्ताओं डॉ यशवंत सिंह के पास दिल्ली पहुंचे और उन्हें शिमला ले आए। पहाड़ी नेताओं के अनुरोध पर डॉ यशवंत सिंह राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े और पहाड़ी रास्तों में स्वाधीनता आंदोलन का संचालन करने लगे।
  • 1 मार्च 1948 ई. को हिमालयन हिल स्टेट्स रीजनल काउंसिल की एक बैठक शिमला में हुई इस बैठक में काउंसिल के पदाधिकारियों के चुनाव कराए गए। डॉ. यशवंत सिंह परमार को इसका अध्यक्ष बनाया।
  • 10 जून, 1947 ई. को हिमालयन हिल स्टेट्स रीजनल काउंसिल की एक बैठक शिमला में आहूत की गई। इस बैठक में सदस्यों में मतभेद पैदा हो गए और 6 सदस्यों ने अपना पृथक संगठन बना लिया। इसको हिमालयन हिल स्टेटस सबरीजनल काउंसिल नाम दिया गया। और यह संगठन टिहरी गढ़वाल ग्रुप से अलग हो गया। इस नई काउंसिल के प्रधान डॉ. यशवंत सिंह चुने गए।
  • अगस्त 1947 ई. में सिरमौर प्रजामंडल ने नाहन में एक सम्मेलन किया था।
  • नवंबर 1947 ई. से डॉ. यशवंत सिंह और पंडित पदमदेव ने सुकेत रियासत के दौरे प्रारंभ किए। मंडी में रियासत की ओर से प्रजामंडलों में भाग लेने वालों पर बहुत अत्याचार होने लगे।
  • 15 अगस्त 1939 ई. को स्वतंत्रता मिलने के पश्चात ब्रिटिश सरकार का समर्थन प्राप्त हो जाने के कारण तथा भारत सरकार के राज्य मंत्रालय की प्रजामंडल कार्यकर्ताओं के साथ पूर्ण सहानुभूति होने के कारण देसी रियासतों के राजाओं ने भी अपनी रियासतों में जिम्मेदार सरकारें स्थापित करना आरंभ कर दिया था।
  • 26-28 जनवरी 1948 ई. को प्रजामंडल के प्रतिनिधियों और रियासतों के राजाओं का सम्मेलन बघाट के राजा दुर्ग सिंह की अध्यक्षता में सोलन के दरबार हाल में संपन्न हुआ। इस सम्मेलन में सर्वसम्मति से प्रस्तावित संघ का नाम हिमाचल प्रदेश रखा गया। इस सम्मेलन में केवल पहाड़ी रियासतों ने भाग लिया।
  • जनवरी 1948 ई. को ऑल इंडिया स्टेटस पीपुल्स कांफ्रेंस के सरंक्षण में शिमला में बैठक हुई। इस बैठक में डॉ यशवंत सिंह परमार ने साफ शब्दों में कहा उन्हें संघ का प्रस्ताव तभी मान्य होगा जब सत्ता लोगों के हाथ में सौंपी जाए और प्रत्येक राज्य को विलय करके हिमाचल प्रदेश की स्थापना की जाए यह बात अन्य राज्यों को स्वीकार्य नहीं थी। ये राज्य चाहते थे कि सारी रियासते भारतीय रूप में विलय की जाए।
  • 8 मार्च 1948 ई. में शिमला की पहाड़ी रियासतों के शासकों ने विलय-पत्र पर सौहार्द्र के बीच हस्ताक्षर करा दिए। राज्य मंत्रालय ( मिनिस्ट्री ऑफ स्टेट्स) के सचिव बने केंद्रीय सरकार की ओर से पहाड़ी रियासतों के विलय से एक पृथक प्रांत हिमाचल प्रदेश के साथ मिला दिया गया
  • 8 मार्च 1948 ई. को शिमला को 27 पहाड़ी रियासतों के विलय से हिमाचल प्रदेश के गठन की प्रक्रिया शुरू हुई।
  • 23 मार्च, 1948 ई. को केंद्रीय वित्त सचिव ई. पी. कृपलानी ने सिरमौर के शासक राजा राजेंद्र प्रकाश को समझा-बुझा कर विलय-पत्र पर हस्ताक्षर करा लिए और इस प्रकार सिरमौर रियासत को हिमाचल प्रदेश के साथ मिला दिया गया।
  • शिमला हिल स्टेशन 26 छोटी-बड़ी रियासतों को विलय करके महासू जिला बनाया गया और मंडी रियासत, सुकेत यादों को भी लेकर के मंडी जिले का निर्माण किया गया। चम्बा और सिरमोर दो अलग-अलग जिले बनाए गए। इन 4 जिलों की 23 तहसीलों का निर्माण किया गया।
  • 18 फरवरी 1948 ई. को प्रजामंडल ने सुकेत सत्याग्रह आरंभ किया जिसे जनता का भारी समर्थन मिला।
  • 15 अप्रैल, 1948 ई. को हिमाचल प्रदेश मुख्य आयुक्त का प्रांत बना। इसमें छोटे-बड़े 31 राज्यों का विलय हुआ।
  • हिमाचल 15 अप्रैल, 1948 ई. से मार्च 1952 तक मुख्य आयुक्त का प्रांत रहा। फिर इसे एक उपराज्यपाल के अंतर्गत श्रेणी का राज्य बना दिया गया और एक लोकप्रिय सरकार का डॉ. वाई. एस. परमार के नेतृत्व में गठित हुआ।
  • 1 जुलाई, 1934 ई. को स श्रेणी का बिलासपुर राज्य इसमें मिला दिया गया। राज्य पुनर्गठन आयोग ने बहुमत से हिमाचल को पंजाब से मिलाने की सिफारिश की लेकिन आयोग की अध्यक्ष फजल अली चाहते थे कि विकास के उद्देश्य से इसे कुछ वर्षों तक अलग रखा जाए। संघीय सरकार ने उसके अलग अस्तित्व को स्वीकृति दी मगर उसकी विधानसभा को समाप्त कर दिया गया और यह संघीय क्षेत्र बन गया।
  • 1 नवंबर, 1956 से 1 जुलाई, 1963 तक हिमाचल एक संघीय क्षेत्र बना रहा जिसके प्रशासक को उप राज्यपाल कहा जाता था। अतिमोक्त तिथी को लोकतांत्रिक ढांचा फिर स्थापित किया गया और एक लोकप्रिय मंत्रीमंडल पर बना।
  • 1 जुलाई 1956 ई. में बिलासपुर का हिमाचल प्रदेश में विलय करके राज्य का पांचवा जिला बनाया गया।
  • 24 मार्च 1952 ई. को डॉ. यसवंत सिंह परमार ने हिमाचल प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त किया।
  • 31 मार्च, 1956 ई. को मंत्रिपरिषद ने त्याग पत्र दे दिया और 1 नवंबर, 1956 ई. से यह प्रदेश केंद्र शासित राज्य बना दिया गया।
  • 1966 में जब पंजाब के पुनर्गठन का प्रश्न फिर से बहस का विषय बना तो पंजाब के पहाड़ी क्षेत्र की जनता ने उन्हें हिमाचल प्रदेश में शामिल किए जाने की जोरदार मांग पेश की। उनकी मांग स्वीकार कर ली गई और पंजाब के पहाड़ी क्षेत्र 1 नवंबर 1966 को हिमाचल में शामिल कर दिए गए।
  • पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों के शामिल हो जाने के बाद हिमाचल का क्षेत्रफल पंजाब या हरियाणा के क्षेत्रफल से अधिक हो गया, मगर यह फिर भी एक संघीय क्षेत्र बना रहा।
  • 1967 में विधानसभा चुनाव के दौरान प्रदेश कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र हिमाचल के लिए उचित आकार तथा पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त करने का वायदा किया। प्रदेश के सभी दलों ने इसका समर्थन किया। मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश सरकार ने पूर्ण राज्य की मांग केंद्रीय राज्य के समक्ष रखी।
  • 31 जुलाई, 1970 को प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने लोकसभा में हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान करने की घोषणा की और इसके पश्चात दिसंबर 1970 में संसद में स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश से एक्ट 1971 पेश किया जिसे संसद ने पास कर दिया।
  • 25 जनवरी, 1971 को जब प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने संघ के 18वें राज्य के रूप में इसका उद्घाटन किया तब यह विधिवत राज्य का दर्जा पा सका।

More Important Article

Leave a Comment