यह कुल्लू का प्रसिद्ध नृत्य है।
यह शिमला, कुल्लू, किनौर एवं लाहौल स्पीति का प्रसिद्ध नृत्य है।
यह नृत्य ख़ूड या खस जाति के लोगों द्वारा किया जाता है। यह नृत्य ठियोग, शिमला के ऊपरी क्षेत्रों तथा सिरमोर आदि क्षेत्रों में किया जाता है।
यह नृत्य पहाड़िया क्षेत्रों के युवक-युवतियों में काफी लोकप्रिय है।
इस नित्य के गीतों में वीरता के गीत गाए जाते हैं यह नृत्य सिरमोर में बहुत लोकप्रिय है।
यह त्यौहार चंबा के हैं। डांगी नृत्य गद्दी महिलाओं द्वारा किया जाता है,।
यह नृत्य की नूर का लोकप्रिय नृत्य है, बोनाग्चयु नृत्य पुरुषों द्वारा एवं वाक्य चंग नृत्य औरतों द्वारा किया जाता है।
यह नृत्य लाहौल स्पीति में लोकप्रिय है।
यह नृत्य कांगड़ा उन्ना एवं हमीरपुर में लोकप्रिय है।
यह नृत्य संपूर्ण हिमाचल प्रदेश में किया जाता है। इसे बिलासपुर में स्वांग मंडी में बांठड़ा एवं कांगड़ा में 16 भगत नाम से पुकारा जाता है।
बूढासिह नृत्य जुब्बल कोटरवाई एवं रोहडू क्षेत्रों में बहुत लोकप्रिय है। यह नृत्य रावल प्रेम गाथाओं पर आधारित है।
लोक संगीत माधुरी स्थानीय लोग सांस्कृतिक परंपरा से प्रसूत होती है। इसमें स्थानीय जनस्वभाव रुचियाँ आचार-विचार सब कुछ घुला-मिला रहता है।
सच पूछें तो पहाड़ों, जल स्रोतों, नदी-नालों वन, उपवनों-खेत-खलिहानों एवं घर आंगन में उपजा-विकसा हिमाचल लोक संगीत अपनी सरसता मिठास शुरूलालित्य में अद्वितीय है।
हिमाचल लोक धनों कि संप्रेषण क्षमता अद्वितीय है। दूर से धुन सुनते ही लोक नृत्यों का समूचा दृश्य तेल चित्र सा आंखों के सामने उभरता सा प्रतीत होता है। चंबा घाटी में घूमते कुंजसुकरात बुकरू पूर्ण आदि गीतों का संगीत, बिलासपुरी मोहन की धुन गंगी की सुर माधुरी, सिरमोर झुरी कि लंब मदरील्ली ताने, कुलीलायन गीतों के गंभीर तथा दूर पहाड़ियों में सकते जाते सुर, कांगड़ा संस्कार गीतों को, शास्त्रीय आरोह अवरोह है भरा संगीत और मंझोटीयों की लंबी धुने हिमाचल लोक संगीत के मूल धाराएं एवं विभिन्न शैली रूप है। इसमें यहां जो संस्कृति पलती है। परंपराएं बोलती है रिवाज जीते हैं और लोक हंसता है नाचता है। लोक संस्कृति की विराटता लोक संगीत में समाहित है।
यह संगीत मूलत: कंठ निस्सृत है। इसमें किसी वाद्य की अनिवार्यता नहीं होती है। इसमें कुछ निश्चित स्वर लिपियां होती है जिनकी ध्वनियाँ पशु-पक्षियों वर्षा तथा निर्झर आदि से ग्रहण की गई प्रतीत होती है। हिमाचली लोक गीत प्रेम पर रचे गए है यथा-
हिमाचली लोक वाद्यों को निम्नलिखित चार रूपों में वर्गीकृत किया गया है-
ढोल, ढोल- ढोलकु, नगाड़ा, दमामा, दंमगटू, नागरटू, गुज्जू, डौरर, हुड़क, पांगी
धौसा आदि अनेक प्रकार के छोटे बड़े ढोल इस क्षेत्र में देखने को मिलते हैं। किन्नौर लाहौल पांगी सिरमौर व कुल्लू के क्षेत्रों के ढोल छोटे-बड़े आकार में विभिन्न प्रकार के उत्सवों में बजाए जाते हैं।
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