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यह एक उपकरण होता है जो नाइट्रोजनी व्यर्थ पदार्थों को अपोहन के द्वारा रक्त से अलग करता है।
हमें कृत्रिम वृक्क की आवश्यकता इसलिए पड़ती है क्योंकि बहुत सारे कारक जैसे संक्रमण, चोट, कम रक्त प्रवाह वृक्क की कार्यप्रणाली को कम कर देती है। इससे शरीर में हानिकारक पदार्थों की मात्रा बढ़ जाती है जिसे मृत्यु हो सकती है।
कृत्रिम वृक्क अपोहन के सिद्धांत पर कार्य करता है।
वह प्रक्रिया जिसमें रक्त से छोटे अणु जैसे पानी, यूरिया तथा यूरिक अम्ल आदि छनकर अलग किया जाता है, लेकिन बड़े अनु जैसे प्रोटीन छनकर बाहर नहीं आते हैं, अपोहन कहलाता है।
कुत्रीम वृक्क बहुत-सी अर्धपारगम्य अस्तर वाली नलिकाओ से युक्त होती है। यह नलिकाए अपोहन द्रव से भरी टंकी में लगी होती है। इस द्रव का दाब रुधिर जैसा होता है लेकिन इसमें नाइट्रोजनी अपशिष्ट उत्पाद नहीं होते। रोगी के रुधिर को इन नलिकाओं से प्रवाहीत करवाते हैं। इस मार्ग में रुधिर से अपशिष्ट उत्पादों विसरण द्वारा अपोहन द्रव्य में आ जाते हैं। शुद्धीकृत रुधिर वापस रोगी के शरीर में पम्प कर दिया जाता है।
यह वृक्क के कार्य के समान है लेकिन एक अंतर है कि इसमें कोई पुनर्वाशोषण नहीं है। प्राय एक स्वस्थ वयस्क में प्रतिदिन 180 लीटर आरंभिक निस्यंद वृक्क में होता है। यद्यपि 1 दिन में उत्सर्जित मुत्र का आयतन वास्तव में एक या 2 लीटर है क्योंकि शेष निस्यंद वृक्क नलिकाओं में पुनर्वाशोषित हो जाता है।
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