संरचना की दृष्टि से भारत के पठार का उत्तरी भाग मध्य प्रदेश की प्रायद्वीपीय सीमाओं के अंतर्गत आता है। उत्तरी सीमा पर यमुना पार का जलोढ़ मैदान प्रारंभ हो जाता है। पश्चिमी की और चंबल नदी पार करते ही अरावली की श्रेणियां मिलती है। हिमालय की तुलना में इस पठारी राज्य में उच्चवच बहुत कम है, दक्कन के पठार के तीन प्रमुख प्राकृतिक विभागों के मध्य प्रदेश में आते हैं। नर्मदा सोन आज के उत्तर में – (1) उत्तरी मध्य उच्च प्रदेश (2) सतपुड़ा मैकाल की श्रेणियां (3) पूर्व की और पूर्वी पठार।
मध्य भारत का पठार विंध्यन शैल समूह का प्रदेश है। पश्चिमी में यह सीमात अरावली श्रेणी से अलग होता है। पूर्व उत्तर में बुंदेलखंड, सिमी में अरावली पर्वत तथा दक्षिण में मालवा के पठार से घिरा यह क्षेत्र चम्बल उप आर्द्र के प्रदेश के नाम से जाना जाता है। इसका विस्तार भिंड, मुरैना, शिवपुरी, ग्वालियर आदि जिलों में है। इस पठार का साधारण डाल उत्तर तथा उत्तर पूर्वी की ओर है।
बुंदेलखंड का पठार मध्य भारत के पठार से पूर्व दिशा में तथा रीवा पन्ना के पठार से उत्तर में स्थित है। इस क्षेत्र का विस्तार मध्य प्रदेश के छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़, तथा दतिया जिले में एवं उत्तर प्रदेश के झांसी, ललितपुर, जालौन एवं बांदा जिले में है। इस पठार का साधारण ढाल उत्तर की ओर है।
मालवा के पठार का प्रारंभ नर्मदा घाटी के उत्तर में विद्यांचल श्रेणी से होता है। उत्तर तथा पूर्वी भाग में इस पठार का विस्तार मंदसौर, सागर तथा गुना तक है। लावा मिट्टी से बने इस पठार का विस्तार मंदसौर, उज्जैन, धार, रतलाम, झबुआ, इंदौर, देवास, सीहोर, राजगढ़, गुना, भोपाल आदि जिलों तक है। चंबल, काली सिंध, पार्वती तथा बेतवा क्षेत्र की प्रमुख नदियां है।
रीवा-पन्ना के पठार को विंध्य का पठारी प्रदेश भी कहा जाता है। इसका विस्तार रीवा, दमोह, सतना तथा पन्ना जिले में है। इस भाग में कहीं काली तो कहीं काली-लाल मिश्रित मिट्टी पाई जाती है। केन, टोंस, सोनार आदि क्षेत्र की प्रमुख नदियां है।
मध्यप्रदेश के पूर्व तथा पश्चिमी भाग में नर्मदा तथा सोन नदी की घाटियों के बीच का भू-भाग नर्मदा-सोन नदी की घाटी के रूप में जाना जाता है। नर्मदा सोन की घाटी मध्य प्रदेश के मध्य अधिकतम नीचा भाग है। जिसकी ऊंचाई 300 मीटर के लगभग है। यह एक भ्रंश घाटी है। नर्मदा की घाटी में मुख्यतः दक्कन ट्रैप की चट्टाने पाई जाती है ।
दक्षिणी मध्य प्रदेश में पश्चिमी सीमा के पूर्व भाग में सतपुड़ा की श्रेणी एवं मैकाल का पठार स्थित है। सतपुड़ा-मैकाल की श्रेणी को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है- राजपीपला की श्रेणी, सतपुड़ा की श्रेणी, मैकाल की श्रेणी।
सतपुड़ा की श्रेणी में तीन काल की चट्टानें पाई जाती है। छिंदवाड़ा तथा बैतूल के पठार में प्रीकेब्रियन युग कि रेवदार ग्रेनाइट नीस मिलती है। ग्वालीगढ़ तथा अन्य विस्तृत भाग में दक्कन ट्रैप का आवरण है। उत्तर भाग में गोंडवाना शैल क्षेत्र है। दक्षिण में एक पेटी लोअर गोंडवाना क्षेत्र की है।
मध्य प्रदेश के पूर्वी भाग में सोन नदी से पूर्व के क्षेत्र में बघेलखंड का पठार स्थित है। यह पठार उबड़-खाबड़ है। ऊंचाई 150 मीटर से अधिक है। गोंडवाना शैल समूह क्षेत्र की विशेषता है। यहां संघन वन पाए जाते हैं। संगठनों के कारण यहां वन्य पशु भी बहुत अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। यहां की प्रमुख फसल चावल है।
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