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पौधों में प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन
पौधों में बीज को छोड़कर किसी अन्य भाग जैसे जड़े, तना, पत्ते से पौधा विकसित होने की प्रक्रिया, प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन कहलाती है. यह तीन प्रकार से होता है-
जड़ों के द्वारा
कुछ पौधों की जड़ों पर कायिक कलिकाएं होती है, जब वे उगती है तो वे पौधों को जन्म देती है. जब शक्करगंदी को गिली मिट्टी में दबाया जाता है तो उस पर उपस्थित कायिक कलिकाएं उगती है तथा नया पौधा बनाती है. अमरूद तथा पुदीने की छोटी जड़ों पर उपस्थित कलिकाए नए पौधे को जन्म देती है.
तने के द्वारा
बहुत से पौधों के तने पर कायिक कलिकाएँ होती है। उदाहरण के लिए, आलू तथा अदरक को जब हम मिट्टी में दब आते हैं तो यह कालिकाएं अंकुरित होकर नया पौधा बनाती है।
पत्तों के द्वारा
कुछ पौधों के पत्तों पर कायिक कलिकाएँ उपस्थित होती है। यह कलिकाएँ उचित परिस्थितियों में नया पौधा बनाती है। इसलिए उन्हें मिट्टी में लगाकर नए पौधे प्राप्त किए जा सकते हैं।
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