जो पुर्जे, ओम, किरचोफ, आदि के नियमों का अनुपालन करते हुए कार्यरत होते हैं वे पेस्सिव पुर्जे कहलाते हैं, जैसे- प्रतिरोधक, संधारित्र, कुंडली एवं ट्रांसफार्मर्स आदि
जो पुर्जे ओम, किरचोफ आदि के नियमों का अनुपालन नहीं करते वे एक्टिव पुर्जे कहलाते हैं। जैसे- डायोड, ट्रांजिस्टर निर्वात वाल्व, आई.सी. आदि।
प्रमुख अर्धचालक तथा है जर्मेनिय तथा सिलिकॉन।इन दोनों तत्वों की अंतिम कक्षा में 40 इलेक्ट्रॉन्स होते हैं। शुद्ध रूप में तो यह दोनों तथा उच्च प्रतिरोधी पदार्थ की भांति व्यवहार करते हैं परंतु इनमें कुछ अन्य तत्वो को अशुद्धि के रूप में मिला देने सेन की चालकता बढ़ जाती है।
यदि जर्मी नियम अथवा सिलिकॉन में इंडिया मथुरा के लिए तत्वों की अल्प मात्रा अशुद्धि के रूप में मिला दी जाए तो परिणाम भी पदार्थ में हॉल्स विकसित हो जाते हैं और ऐसे पदार्थ P कहलाता है।
यदि जर्मी नियम अथवा सिलिकॉन में अर्सेनिक अथवा: एंटी मनी तत्वों की मात्रा अशुद्धि के रूप में मिला दी जाए तो परिणाम में पदार्थ में मुक्त इलेक्ट्रॉन विकसित हो जाते हैं और ऐसा पदार्थ N कहलाता है।
डोपिंग: किसी अर्धचालक नेताओं में किसी अन्य तत्वों को औषधि के रूप में मिश्रित करने की प्रक्रिया डोपिंग कहलाती है।
P तथा N प्रकार में जो युक्ति तैयार होती है वह PN डायोड कहलाती है। या युक्ति दिष्टकारी की भांति कार्य कर सकती है क्योंकि इसमें से धारा का प्रभाव प्रभाव केवल एक दिशा में ( फॉरवर्ड दिशा में) होता है।
पोटेंशियल बैरियर : जिस न्यूनतम वोल्टता पर किसी PN डायोड में से धारा प्रवाह प्रारंभ हो जाता है वह पोटेंशियल बैरियर कहलाता है। धर्मे नियम डायोड के लिए इसका मान 0.3V तथा सिलिकॉन डायोड के लिए 0.7V होता है।
वर्तमान समय में 1000 V वोल्टता पर 10 एंपियर तक धारावाहिक क्षमता वाले डायोड विकसित हो गए जो 230 V ऐसी को सीधे डी सी में परिवर्तित कर सकते हैं।
परिचय PN डायोड एक दिशा में कार्य करने वाली युक्ति है अर्थात इसमें से धारा का प्रभावी प्रवाह केवल एक ही दिशा में हो सकता है। अंतरिश युक्ति का उपयोग एसी को डीसी में परिवर्तित करने वाली युक्ति, अर्थात दिष्टकारी के रूप में किया जाता है।
पूर्ण तरंग दिष्टकारी, अर्ध तरंग दिष्टकारी की तुलना में दोगुनी धारा प्रदान करता है। क्षेत्र अधिकारी भी पूर्ण तरंग दिष्टकारी है। स्केल ई पिल फ्रिकवेंसी सप्लाई फ्रीक्वेंसी की दोगुनी होती है।
किसी दिष्टकारी परिपथ से प्राप्त है फल सेटिंग डीसी को शुद्ध डीसी में परिवर्तित करने के लिए प्रयुक्त परिषद बिल्डर परिपथ कहलाता है। यह चौक इनपुट तथा केपीसीटर इनपुट प्रकार का होता है। इसका आकार L T तथा w के समान हो सकता है।
L.E.D यह गैलियन आर्सेनाइड नामक योगीक से बना ऐसा डायोड है जो केवल 1.5 V से 3.0V वोल्टता प्रकाश किरणे उत्सर्जित करता है। इसका उपयोग वैद्युतिक उपकरणों एवं यंत्रों में एक प्रदर्शक युक्ति के रूप में किया जाता है।
यह एक निश्चित एवं पूर्व निर्धारित ब्रेकडाउन वोल्टता वाला डायोड है जिसका उपयोग वोल्टता रेगुलेटर परिपथो में किया जाता है।
यह एक प्रकाश सहित समिति के समान कार्य करने वाला डायोड है जो प्रकाश किरणे पड़ने पर अपने प्रतिरोध को अत्यधिक घटा लेता है। इसका मान प्रकाश- सुग्राही युक्ति के रूप में किया जाता है।
परिचय- तीन अर्द्ध चालक खंडो अर्थात दो PN संगमा वाली युक्ति ट्रांजिस्टर कहलाती है। यह युक्ति ट्रायोड वाल्व की भांति प्रवर्धन माड्यूलेशन, ओसीलेशंनस के लिए प्रयोग की जा सकती है।
किस्में – ट्रांजिस्टर मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं-
NPN ट्रांजिस्टर इसमें दो N खंडो के बीच एक पतला P खंड होता है। इसके प्रसारण के लिए कलेक्टर तथा देश को धन वॉल्टता प्रदान की जाती है। बेस वॉल्टता का मान कलेक्टर वॉल्टता का 1/5 से 1/10 वा अंश होता है।
PNP ट्रांजिस्टर इसमें दो P खंडो के बीच एक पतला खंड होता है। इस के प्रचलन के लिए कलेक्टर तथा बेस को ऋण वॉल्टता प्रदान की जाती है।
सामान्य प्रकार के PNP तथा PNP ट्रांजिस्टर्स के अतिरिक्त कई विशेष प्रकार के
ट्रांजिस्टर्स कोनी मलिक 3 शैलियों में प्रचलित किया जा सकता है-
1. उभयनिष्ठ एमीटर इस शैली में इनपुट आउटपुट के बीच, एमिटर संयोंजक को उभयनिष्ठ रखा जाता है। इस परिपथ में
इनपुट प्रतिरोध – मध्यम
आउटपुट प्रतिरोध- उच्च
करंट गेन – 20 से 500 तक
इस शैली में इनपुट तथा आउटपुट के बीच, बेस, फिल्म जोकर को उभयनिष्ठ रखा जाता है इस परिपथ में-
इनपुट प्रतिरोध – निम्न
आउटपुट प्रतिरोध – उच्च
करंट गेन – 0.9 से 0.99 तक
इस शैली में इनपुट तथा आउटपुट के बीच, कलेक्टर संयोजक को उभयनिष्ठ रखा जाता है। इस परिपथ में-
इनरपुट प्रतिरोध – उच्च
आउटपुट प्रतिरोध – निम्न
करंट गेन – 50 से 500 तक
दो अथवा दो से अधिक खंडों वाला RC युग्मीत प्रवर्धक, कैसकेड़ प्रवर्धक कहलाता है। इस परिपत्र को एक आईसी चिप पर तैयार किया जा सकता है और यह संतोषजनक रूप से सभी प्रकार के प्रवर्धन कार्यों के लिए उपयोगी है।
निम्न आवृति (50Hz से 1 kHz तक) धारा तो अल्टरनेटर से उत्पन्न की जा सकती है परंतु उच्च उच्च आवर्ती धारा ( किलो हर्टज, मेगाहर्ट्ज आदि) पैदा करने के लिए जो इलेक्ट्रॉनिक परिपथ प्रयोग किया जाता है वह ओसीलेटर कहलाता है।
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