दीप्त अथवा अदीप्त वस्तुओं को हम तभी देख सकते हैं जब उनके द्वारा उत्सर्जित हैं अथवा परावर्तित प्रकाश हमारी सामान्य आंखो द्वारा ग्रहण किया जाता है। हमारे चारों ओर की वस्तुएं प्रकाश के कुछ भाग का अवशोषण कर लेती है तथा शेष भाग को परावर्तित कर देती है। परावर्तित प्रकाश हमारी आंखों में पहुंचता है जिससे हमें वस्तुएं दिखाई देने लगती है।
किसी चमकदार धरातल (सत्तह) से टकराकर प्रकाश की उसी माध्यम में वापिस जाने की क्रिया को प्रकाश का परावर्तन कहते हैं। वह सत्तह जहां से प्रकाश का परावर्तन होता है उसे परावर्तक सतह कहते हैं।
दर्पण बनाने के लिए एक कांच की पट्टी का लेकर उसकी एक सत्य को रजतित (चांदी की पॉलिश) कर दिया जाता है। इसके पश्चात कांच की पट्टी का पर चांदी की पतली परत को सुरक्षित बनाए रखने के लिए गहरे रंग का पेंट कर दिया जाता है। इस प्रकार दर्पण से होकर प्रकाश दूसरी ओर नहीं जा पाता और पूरी तरह रुक जाता है।
प्रकाश के परावर्तन के लिए चमकदार सतह की आवश्यकता पड़ती है क्योंकी चमकदार सतह द्वारा न तो प्रकाश अवशोषित होता है और ना ही आर-पार जा सकता है। इसलिए दर्पण को रजतित करके चमकदार बनाया जाता है ताकि प्रकाश का अवशोषण में तथा लाल पेंट करके प्रकाश को आर पार है जाने से रोका जाता है।
हां, समतल दर्पण हमेशा पदार्थ के आकार के बराबर प्रतिबिंब बनाता है परंतु वह प्रतिबिंब आभासी तथा पार्श्व परिवर्तित होता है।
जब हम किसी वस्तु को दर्पण में देखते हैं तो प्राय उसके प्रतिबिंब के विपरीत दिशा दिखाई देती है अर्थात वस्तु का दाया भाग प्रतिबिंब में बयां भाग दिखाई देता है और वस्तु का बाया भाग प्रतिबिंब में दाया भाग दिखाई देता है। पति भी मुंह में वस्तुओं की दिशा परिवर्तन को पार्श्व परिवर्तन कहते हैं। इसी पार्श्व परिवर्तन के कारण दर्पण के सामने रखी वस्तु के अक्सर प्रतिबिंब में उल्टे दिखाई देते हैं।
प्रकाश एक प्रकार का उर्जा रुपी साधन है जिसके द्वारा हमें वस्तुएं दिखाई देती है। प्रकाश स्वयं अदृश्य होता है।
नाई की दुकान में दीवारों में पर आमने-सामने लटकाए गए दर्पण के सम्मुख है खड़े होने पर हमारे असंख्य प्रतिबिंब बनते हैं क्योंकि दोनों दर्पण के बीच का कोण 0 डिग्री है परंतु प्रकाश की कुछ मात्रा की हानि हो जाने के कारण हमें सीमित प्रतिबिंब हीं दिखाई देता है।
समतल दर्पण एक वस्तु का एक ही प्रतिबिंब बनता है। यदि दो समतल दर्पण ओं को किसी निश्चित कोण पर संयोजित किया जाता है, तो प्रतिबिंब का प्रतिबिंब पहले दर्पण में परिवर्तित होने के कारण एक से अधिक प्रतिबिंब बनते हैं इस तकनीक का उपयोग मंदिरों में देव प्रतिमाओं की अनेक प्रतिमाएं देखने में किया जा सकता है।
सूर्य का सफेद प्रकाश बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी तथा लाल सात रंगों से मिलकर बना है।
जब सूर्य के प्रकाश को प्रिज़्म के एक फलक पर डाला जाता है तो अपवर्तन के कारण विचलित प्रकाश पर लिखे सात रंगों में बंट जाता है। इनमें लाल रंग सबसे कम तथा बैंगनी रंग सबसे अधिक विचलित होता है। इसका मुख्य कारण यह है कि प्रकाश के विभिन्न रंगों का विचलन अलग अलग होता है। इस कर्म को अंग्रेजी शब्द VIBGYOR तथा हिंदी के बेनीआहपीनीला द्वारा याद रखा जा सकता है।
इंद्रधनुष- वर्षा के बाद कुछ जल कण वायु में लटके रहते हैं। जब सूर्य का प्रकाश इन जलकणो पर पड़ता है तो यह प्रकाश के विक्षेपण अनुसार सात रंगों में विभाजित हो जाता है। प्रकाश का यह वर्ण कर्म आकाश में इंद्रधनुष के रूप में दिखाई देता है। इंद्रधनुष का बनना प्रकृति में प्रकाश का विक्षेपण का सबसे बड़ा उदाहरण है।
क्रियाकलाप- अपने किसी मित्र की आंख की पुतली को ध्यान से देखो और पुतली के आकार का अनुमान लगाओ। अब टॉर्च के द्वारा मित्र कि आप पर प्रकाश डाला। कुछ समय उपरांत टोर्च को बंद कर पुतली के आकार का अनुमान लगाओ। हम देखते हैं कि पुतली का आकार घट गया है। अब अपने मित्र को किसी अंधेरे कमरे में ले जाओ और कमरे की वस्तुओं को देखने के लिए कहो। थोड़ी देर उपरांत मित्र की आंख की पुतली के आकार का अनुमान लगाओ। पुतली का आकार बढ़ जाता है। अंत पुतली का आकार तीव्र प्रकाश में कम हुए मंद प्रकाश में अधिक हो जाता है। इस प्रकार पुतली नेत्र के अंदर जाने वाले हैं प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करती है।
कार्निया या स्वच्छ मंडल, परितारिका, पुतली, लेंस, रेटिना या दृष्टि पटल, प्रकाशिक पत्रिका।
परितारिका नेत्र का वह भाग है जो इसे विशिष्ट रंग प्रदान करती है। परितारिका नेत्र में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करती है।
मानव नेत्र में पारदर्शक मांसपेशियों से बना एक उभयोतल लेंस होता है। यह लेख रेटिना पर वस्तु का प्रतिबिंब बनाता।
मानव नेत्र के रेटिना पर 2 बिंदु पाए जाते हैं-
पीत बिंदु, अंध बिंदु।
इनमें से पीत बिंदु में संवेदना पाई जाती है अर्थात जब वस्तु का प्रतिबिंब पीत बिंदु पर बनता है तो इसका संदेश प्रकाशिक तंत्रिका के द्वारा मस्तिष्क तक पहुंचता है। अंध बिंदु पर बनने वाले प्रतिबिंब का संदेश मस्तिष्क तक नहीं पहुंचता क्योंकि यह संवेदनहीन होता है।
विटामिन-A की कमी का कारण है। हमें आहार में कच्ची गाजर, फूल गोभी, पालक तथा कार्ड लिवर तेल, अंडे, दूध, दही, पनीर, मक्खन, आम व पपीता लेना चाहिए।
जो व्यक्ति बिल्कुल भी नहीं देख पाते हो ऐसे व्यक्ति स्पर्श द्वारा अथवा ध्वनियों द्वारा वस्तुओं को पहचानने का प्रयत्न करते हैं वे अपनी दूसरी ज्ञान इंद्रियों को अधिक विकसित कर लेते हैं और इस प्रकार ऐसे व्यक्ति पढ़ने लिखने का कार्य सुचारु रुप से कर पाते हैं। चाक्षुषविकृति वाले व्यक्तियों को पढ़ने लिखने में ब्रैल पद्धति अत्यधिक सहायक है जो स्पर्श पर आधारित पद्धति है।
लुई ब्रैल जो स्वयं चाक्षुषविकृति युक्त व्यक्ति थे ने ब्रैल पद्धति विकसित की। वर्तमान पद्धति 1932 में अपनाई गई।
ब्रैल पद्धति में 63 बिंदुकिंत पैटर्न/छाप है। प्रत्येक छाप एक अक्षर, अक्षरों के समूचय, सामान्य शब्द अथवा व्याकरनिक चीहन, को प्रदर्शित करती है। बिंदुओं को ऊर्ध्वाधर पंक्तियों के दो कक्षों में व्यवस्थित किया गया। प्रत्येक पंक्ति में तीन बिंदु है।
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