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Semiconductor Devices से जुडी जानकारी

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अर्धचालक

92 प्राकृतिक तत्वों में कुछ तत्व ऐसे भी है जिन की चालकता साल को एवं चालकों के बीच के स्तर की होती है, ऐसे तत्व अर्धचालक कहलाते हैं. जर्मेनियम तथा सिलिकॉन इन तत्वों की अंतिम कक्षा में चार इलेक्ट्रॉनिक्स होते हैं।

शुद्ध अर्धचालक

शुद्ध अर्धचालक तत्व, इंट्रीनसिक कल आता है और इनका कोई विशेष उपयोग नहीं है।

अशुद्ध अर्धचालक

यदि शुद्ध अर्धचालक तत्वों में किसी अन्य तत्वों को औषधि के रूप में मिला दिया जाए तो प्रणामी पदार्थ, एक्सिट्रीन्सिक कहलाता है।

p  प्रकार का पदार्थ

शुद्ध अर्धचालक तत्वों में कृष्ण जी तथा इंडियस\ गेली माझी को समावेशित करने से बना परिणामी पदार्थ P  प्रकार का पदार्थ कहलाता है। इस पदार्थ में धनात्मक आवेश वाहको होल्स की बहुलता होती है।

N प्रकार का पदार्थ

शुद्ध अर्धचालक तत्वों में पंचसंयोजी तत्व आर्सेनिक\ एंटीमनी आदि को समावेशित करने से बना परिणामी पदार्थ N प्रकार का पदार्थ कहलाता है। इस पदार्थ में ऋण आत्मक आवेश वाहको, मुक्त इलेक्ट्रॉन की बहुलता होती है। P तथा N प्रकार के अर्धचालक ओं का उपयोग अर्थ चालक नियुक्तियों  बनाने में किया जाता है।

डोपिंग

शुद्ध अर्द्धचालकों का उपयोग को समावेशित करने की प्रक्रिया डोपिंग कहलाती है।

ऊर्जा बैंड

चालकों में कंडक्शन बैंड तथा वैलेंसी बैंड एक दूसरे पर चढ़े हुए होते हैं। चालकों के कंडक्शन बैंड तथा वैलंसी के बीच फोरबिडेन बैंड होता है। हीरे के फोरबिडेन ऊर्जा गैप 6 eV  होता। अर्धचालक मैं फोरबिडेन बैंड छोटा (लगभग 1.1 eV) होता है इसलिए इन्हें अर्धचालक कहा जाता है।

P-N संगम डायोड

PN डायोड

P तथा N प्रकार के अर्धचालकों को को संयुक्त कर बनाए गए डायोड P-N संगम डायोड जा PN कहलाते हैं. इनका निर्माण विकसित संगम विधि अथवा फ्यूजड संगम विधि के द्वारा लिया जाता है.

तापायानिक डायोड वाल्व की भांति ही PN संगम डायोड भी एसी को डीसी में परिवर्तित कर सकता है। इसमें अग्निय दिशा मे धारा विवाह संपन्न होता है परंतु विपरीत दिशा में धाराप्रवाह लगभग नगण्य होता है।

बेरियर विभवांतर

  • जर्मी नियम डायोड = 0,1V
  • सिलिकॉन डायोड = 9.7V

केवल 1-2 वॉल्ट विभांतर पर डायोड में से 20 mA से 100 mA धारा प्रवाहित हो सकती है।

ब्रेकडाउन

यदि विपरीत वॉइस कमांड एक निश्चित वोल्टता का से अधिक हो जाए तो डायोड का दिष्टकारी गुण समाप्त हो जाता है और वह सामान्य बालक बन जाता है। प्रत्येक डायोड के लिए ब्रेकडाउन वोल्टता का का मान भिन्न होता है।

डिप्लीशन क्षेत्र

PN संगम में निर्माण के तुरंत बाद तैयार हुआ एक तंग गलियां राज्य में अल्पसंख्यक आवेशों आंखों की कमी पैदा हो जाती है डिप्लीशन क्षेत्र कहलाता है।

ट्रांजिस्टर

PNP तथा NPN  ट्रांजिस्टर

डायोड की खोज के पश्चात कुछ ही समय में उल्टे क्रम में एक दूसरे से सटा कर दो PN संगमों ट्रांजिस्टर की खोज हुई है। ट्रांजिस्टर दो प्रकार के अर्थात PNP प्रकार के होते हैं जबकि तापायानीक वाल्व एक ही प्रकार के होते हैं। दोनों प्रकार के ट्रांजिस्टर की बायसिंग विधि एक दूसरे के विपरीत होती है। ट्रायोड की समान ही ट्रांजिस्टर का उपयोग एम्पलीफिकेशन, ओसीलेशन आदि के लिए किया जाता है।

ट्रांजिस्टर्स का संयोजन

ट्रांजिस्टर्स को निम्नलिखित तीन प्रकार में से वंचित कर एंपलीफायर परिपथ तैयार किए जा सकते हैं। तीनों प्रकार के संयोजन की विशेषताएं भिन्न भिन्न होती है।

कॉमन एमिटर परिपथ

इसमें, इनमे इनपुट तथा आउटपुट परीक्षाओं में एमटिर  उभयनिष्ठ रहता है।

कॉमन बेस परिपथ

इसमें इनपुट तथा आउटपुट परिपथों मे बेस उभयनिष्ठ रहता है।

कॉमन कलेक्टर परिपथ

इसमें इनपुट तथा आउटपुट परिपथों में कलेक्टर उभयनिष्ठ रहता है।

CE, CCB, CC संयोजन की विशेषताओं की

विशेषता CE CB CC
करंट गेन 21-100 <1 21-100
वोल्टेज गैन 300-600 100-200 <1
पावर गेन उच्च मध्यम निम्न
इनपुट अपघात निम्न अत्यंत निम्न अत्यंत उच्च
आउटपुट अपघात मध्यम अत्यंत उच्च अत्यंत निम्न
फेज परिवर्तन 180 डिग्री 0  डिग्री 0  डिग्री
उपयोग एंपलीफायर, ओसीलेटर प्री- एंपलीफायर एमीटर- फ्लोवर एंपलीफायर

बाइपोलर एवं युनिपोलर ट्रांजिस्टर्स

जिन ट्रांजिस्टर्स धारा चालन, होल्स तथा मुक्त इलेक्ट्रॉन तथा दोनों प्रकार के आवेदकों के द्वारा संपन्न होता है वह बाई पोलर ट्रांजिस्टर कहलाते हैं। इसके विपरीत, जिन ट्रांजिस्टर्स में धारा चालन, केवल 1 प्रकार के आवेश वाह को (होल्स अथवा मुक्त इलेक्ट्रॉन्स) के द्वारा संपन्न होता है वह युनिपोलर ट्रांजिस्टर कहलाते हैं।

ट्रांजिस्टर बायासिंग

ट्रांजिस्टर के विभिन्न इलेक्ट्रोड्स को 45 वोल्टता प्रदान करना ट्रांजिस्टर बायासिंग कहलाता है।

ट्रांजिस्टर परिपत्रों में बेस बायासिंग तकनीक महत्वपूर्ण होती है। बेस बायस का मान यथासंभव स्थिर रहना चाहिए अन्यथा परिपथ का कार्य संतोषजनक नहीं होगा।

बेस बायसिग के लिए निम्नलिखित चार प्रकार के सेल्फ बायासिंग परिपथ प्रयोग किए जाते हैं। जिनमें से वोल्टता विभाजनक बायासिंग तकनीक, सर्वोत्तम एवं प्रचलित तकनीक है।

  • बेस प्रतिरोधक बायासिंग
  • फीडबैक प्रतिरोधक बायासिंग
  • एमीटर प्रतिरोधक बायासिंग
  • वोल्टता विभाजक बायासिंग

ट्रांजिस्टर नंबरिंग

किसी डायोड तथा ट्रांजिस्टर पर उसकी पहचान हेतु अवसर एवं अंकों का एक समूह अंकित किया जाता है जो उसका नंबर कहलाता है। इसी नंबर के संदर्भ में किसी डायोड\ट्रांजिस्टर की विशेषताओं की जानकारी ट्रांजिस्टर डाटा नामक पुस्तक से प्राप्त की जाती है। नंबर में प्रयुक्त प्रथम एवं द्वितीय अक्षरों का अर्थ निम्नलिखित है अक्षरों के बाद की संख्या, ट्रांजिस्टर की विशेषताओं की भिन्नता को दर्शाती है।

अक्षर
प्रथम स्थान पर अर्थ द्वितीय स्थान पर अर्थ
A जर्मेनियम निर्मित डिटेक्टर
B सिलिकॉन निर्मित परिवर्तनशील धारिता
C एकल संगम, गैलियम आर्सेनाइट निर्मित ए एफ एंपलीफायर
D एकल संगम, इंडियम, एंटीमोनाइड से निर्मित ए एफ  पावर एंपलीफायर
E टनल डायोड
F आर एफ एमप्लीफायर
R R  फोटो कंडक्टिंग पदार्थ से निर्मित
LU आर एफ एमप्लीफायर
Y रेक्टिफायर डायोड
Z जिनर डायोड

ट्रांजिस्टर संयोजको की पहचान

डायोड में एनोड

एनोड संयोजक के निकट बिंदु त्रिभुज तीर चिन्ह अथवा एक गोल पट्टी खिंची होती है.

ट्रांजिस्टर में कलेक्टर

कलेक्टर संयोजक के निकट बिंदु, त्रिभुज तीर चिन्ह अथवा बॉडी में उभरा हुआ भाग होता है। प्राय मध्य शिरा बेस तथा शेष सिरा एमीटर होता है। आरएफ प्लास्टिक पैकिंग ट्रांजिस्टर्स में खोल, कलेक्टर से आयोजित होता है।

थर्मल रन-वे

प्रत्येक ट्रांजिस्टर के लिए एक सुरक्षित कार्यकारी तापमान निर्धारित होता है। यदि ट्रांजिस्टर का कार्य कार्य तापमान बढ़ जाए तो उसका अर्धचालक गुण समाप्त हो जाता है, यह स्थिति थर्मल रन- वे कहलाती है। थर्मल रनवे से बचाव के लिए पावर ट्रांजिस्टर की बॉडी पर  उष्मा-विकीरक धात्विक घोल चढ़ाया जाता है जो हिट-सिंक कहलाता है।

विशिष्ट डायोडस

PN संगम डायोड के अतिरिक्त अनेक प्रकार के विशिष्ट डायोड बनाए गए हैं तो निम्न प्रकार हैं-

जिनर डायोड

इसकी ब्रेकडाउन वोल्टता पर इसका मान निम्न होता है एवं पूर्व निर्धारित होता है। ब्रेकडाउन वॉल्टता पर इस डायोड में से प्रवाहित होने वाली धारा एवलाची धारा या जिनर धारा कहलाती है। ब्रेकडाउन वॉल्टता  का मान 12V, 27V आदि होता है। इसका उपयोग वॉल्टता रेगुलेटर परिपथों मे किया जाता है।

टर्नल डायोड

इस प्रकार के डायोड में PN संगम को अत्यंत संकरा (सूरग की भांति) बनाया जाता है। इसमें ऋण प्रतिरोध विशेषता होती है। इसका उपयोग अति उच्च आवृत्ति (जिगा हर्ट्ज) वाले ओसीलेटर प्रवर्धक परिपथों में किया जाता है।

LED

यह गैलियन आर्सेनाइड (GaAs) अथवा गैलियम फास्फाइड (GaP) से बनाया जाता है। निर्धारित विभवांतर (1.5 V, 3.0V आदि) पर यह प्रकाश उत्पन्न करता है। इसका उपयोग प्रदर्शन कार्य के लिए किया जाता है।

वैरेक्टर डायोड

यह विशेष प्रकार का संगम डायोड है जिसकी आधारित धारिता, आरोपित बोल्टता के अनुसार परिवर्तित होती है। इसका उपयोग ऊंचा कृतियों पर सर्विसिंग एमप्लीफाइंग ट्यूनिंग आदि के लिए किया जाता है।

प्रकाश सुग्राही डायोड

यह सेरामिक के आधार पर कैडमियम सल्फाइड की परत जमा कर बनाया जाता है। प्रकाश किरणे पड़ने पर इस का आंतरिक प्रतिरोध बहुत घट जाता है। इसका उपयोग प्रकाश चालित स्विच के रूप में किया जाता है।

विशिष्ट ट्रांजिस्टर

सामान्य प्रकार के ट्रांजिस्टर्स के अतिरिक्त अनेक प्रकार के विशिष्ट ट्रांजिस्टर्स बनाए गए हैं जो निम्न प्रकार है-

टेट्रोड ट्रांजिस्टर

उच्च आवृत्तियों पर प्रवर्धन के लिए टेट्रोड ट्रांजिस्टर बनाया गया है, इसमें दो बेस संयोजक होते हैं जिनके कारण उच्च आवृत्तियों पर भी बेस प्रतिरोध का मान कम रहता है।

UJT

इसमें केवल एक (PN) संगम होता है परंतु N- क्षेत्र बड़ा होता है और उसमें दो संयोजक बेस-1 तथा बेस-2 निकाले जाते हैं। इसका उपयोग टाइमर परिपथों में किया जाता है।

FFET

यह तीन सिरों वाली यूनीपोलर युक्ति है। इसमें ड्रेन धारा का नियंत्रण, वैद्युत क्षेत्र द्वारा किया जाता है। इसके संयोजक सोर्स, गेट, और ड्रेन कहलाते हैं। इसका उपयोग ऑपरेशनल एंपलीफायर, मेमोरी, लॉजिक परिपथों आदि में किया जाता है।

MOSFET

इसमें भी सोर्स, गेट तथा ड्रेन नामक संयोजक होते हैं। गेट एक धात्विक ऑक्साइड परत के रूप में होता है। इसका उपयोग लॉजिक परिपथो में किया जाता है।

SCR

यह चार परतों वाली तीन संयोजको वाली ठोस अवस्था युक्ति है। इसका उपयोग स्विच परिपथों, इनवर्टर, रेक्टिफायर आदि में किया जाता है। इसके संयोजक कैथोड गेट तथा एनोड कहलाते हैं।

TRIAC

यह समांतर क्रम में जोड़े गए दो के तुल्य होता है। इसमें दो मुख्य संयोजक होते हैं और एक गेट संयोजक होता है। इसका उपयोग मेमोरी एलिमेंट के रूप में किया जाता है।

DIAC

यह दो संयोजको, तीन पर्त, दोनों दिशाओं में कार्य करने वाला डायोड होता है। इसका उपयोग ट्रिगर, डियर आदि परिपथों में किया जाता है।

आई सी

अनेक डायोड्स, ट्रांजिस्टर्स, प्रतिरोधक तथा संधारित्र को एक ही अर्धचालक पटल पर तैयार कि गई ठोस अवस्था युक्ति आई सी कहलाती है। आई सी के निर्माण से इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, कंप्यूटर्स आदि का लघु आकार में निर्माण संभव हुआ है। आईसी निम्नलिखित चार प्रकार की होती है।

मोनोलिथिक (IC)

यह सर्वाथिक आई सी है। इसमें अनेक को डायोड, ट्रांजिस्टर्स, प्रतिरोधक एवं संधारित्र को एक पतले अर्द्धचालक वेफर (सब्सट्रेट) पर तैयार किया जाता है।

थिन फिल्म

इसमें सब्सट्रेट की मोटाई 0.0025 सेंटीमीटर होती है परंतु इसमें ट्रांजिस्टर का निर्माण नहीं होता। यह कम प्रयोग की जाती है।

थिक फिल्म

IC इसमें सब्सट्रेट की मोटाई अधिक होती है और इसमें ट्रांजिस्टर भी होते हैं।

हाइब्रिड IC

मोनोलिथिक तथा थिन फिल्म IC  को संयुक्त रुप है।

वर्गीकरण ICs

IC को लिनियर तथा डिजिटल वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है। लिनियर ICs का प्रयोग केवल गणना यंत्रों में किया जाता है। डिजिटल आईसी निमृत चार प्रकार की होती है।

  • SSI 12 गेटस से कम ।
  • MSI 12 से 100 गेट्स
  • LSI 100 से 400 गेटस
  • VLSI 400 से 10000 गेटस

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