आज इस आर्टिकल में हम आपको शुंग वंश (लगभग 184-72 ई.पु.) का इतिहास के बारे में बताने जा रहे है.
वर्ग तथा वर्गमूल से जुडी जानकारी
भारत के प्रमुख झील, नदी, जलप्रपात और मिट्टी के बारे में जानकारी
भारतीय जल, वायु और रेल परिवहन के बारे में जानकारी
बौद्ध धर्म और महात्मा बुद्ध से जुडी जानकारी
विश्व में प्रथम से जुड़े सवाल और उनके जवाब
भारत में प्रथम से जुड़े सवाल और उनके जवाब
Important Question and Answer For Exam Preparation
मौर्य वंश के अंतिम शासक वृहद्रथ की हत्या करके 184 ईसा पूर्व में पुष्यमित्र शुंग ने सम्राज्य के सिंहासन पर अधिकार कर लिया तथा शुंग राजवंश की स्थापना की. शुंग ब्राह्मण थे. अशोक द्वारा यज्ञों ऊपर रोक लगा दिए जाने के बाद उन्होंने पुरोहित का कर्म त्याग करें सैनिक वृति को अपना लिया.
पुष्यमित्र अंतिम मौर्य शासक वृहद्रथ का प्रधान सेनापति था. दिव्यावदान के अनुसार वह पुष्यधर्म का पुत्र था. एक दिन सेना का निरीक्षण करते समय वृहद्रथ कि उसने धोखे से हत्या कर दी. उसने सेनानी उपाधि धारण की थी. राजा बन जाने के बाद भी उसने अपनी यह उपाधि बनाए रखा.
पुष्यमित्र शुंग ने मगध साम्राज्य पर अपना अधिकार जमा कर जहां एक ओर यवनों के आक्रमण से देश की रक्षा की, वहीं दूसरी ओर देश में शांति और व्यवस्था की स्थापना कर वैदिक धर्म एवं आदर्शों, जो अशोक के शासनकाल में उपेक्षित हो गए थे, को पुनः प्रतिष्ठित किया. इसी कारण उसका काल वैदिक प्रतिक्रिया अथवा वैदिक पुनर्जागरण का काल कहलाता है.
मालविकाग्निमित्र के अनुसार पुष्यमित्र के काल में लगभग 184 ई. पु. में विदर्भ का युद्ध लड़ा गया, पुष्यमित्र की विजय हुई और राज्य को दो भागों में बांट दिया गया, वर्धा नदी दोनों राज्यों की सीमा बनी. इस राज्य का एक भाग माधव सेन को प्राप्त हुआ. दोनों भागों के नरेश ने पुष्यमित्र को अपना सम्राट मान लिया तथा पुष्यमित्र का प्रभाव क्षेत्र नर्मदा नदी के दक्षिण तक विस्तृत हो गया.
वृहद्रथ के काल में पुष्यमित्र के काल तक यवनों के एक या दो आक्रमण हुए और पुष्यमित्र के हाथों (सेनापति एवं राजा के रूप में) उन्हें पराजित होना पड़ा. यह पुष्यमित्र के शासनकाल की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी.
पुष्यमित्र का सम्राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में विरार तक तथा पश्चिम में पंजाब से लेकर पूर्व में मगध तक फैला हुआ था. साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी. दिव्यावदान और तारानाथ के अनुसार जालंधर और सियालकोट पर भी उसका अधिकार था. पुष्यमित्र देवी की उत्पत्ति के सिद्धांत में विश्वास करता था. उसका पुत्र अग्निमित्र विदिशा का राजा था. धनदेव कौशल का राज्यपाल था. राजकुमार सेना का संचालन भी करते थे.
शासन में सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद भी होती थी. इस समय भी ग्राम शासन की सबसे छोटी इकाई होती थी. इस काल तक आते-आते मौर्यकालीन केंद्रीय नियंत्रण में शिथिलता आ गई थी तथा सामंतीकरण की प्रवृतियां सक्रिय होने लगी.
शुंग काल में राजधानी हालांकि पाटलिपुत्र थी, किंतु विदिशा का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक महत्व बढ़ता गया और कालांतर में इसने पाटलिपुत्र का स्थान ले लिया. पुष्यमित्र उत्तर भारत का एकछत्र सम्राट बन गया था.
पुष्यमित्र ने अशोक द्वारा निर्माण करवाए गए 84000 स्तूपों को नष्ट करवाया. बौद्ध ग्रंथ दिव्यावदान के अनुसार पुष्यमित्र ने कुछ बौद्धों को अपना मंत्री नियुक्त कर रखा था. अत: उसे बौद्ध विरोधी कहना पूरी तरह सच नहीं है. पुराणों के मुताबिक पुष्यमित्र ने लगभग 36 वर्षों तक शासन किया.
पुष्यमित्र की मृत्यु ( 148 ई. पु.) के पश्चात उसका पुत्र अग्निमित्र शुंग वंश का राजा हुआ. उसने कुल 8 वर्षों तक यानी लगभग 140 ई. पु. तक शासन किया. वही कालिदास के नाटक मालविकाग्निमित्र का नायक है. अग्निमित्र के बाद वसुजेयष्ठ या सुज्येष्ठ राजा हुआ.
शुंग वंश का चौथा राजा वसुमित्र हुआ, जिसने यवनों को पराजित किया था. पुष्यमित्र के शासनकाल में वह उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत का राज्यपाल था. उसने 10 वर्षों तक लगभग 130 ई. पु. तक राज्य किया. एक दिन नृत्य का आनंद लेते समय मुजदेव या मित्रदेव नामक व्यक्ति ने उसकी हत्या कर दी.
वसुमित्र के बाद आंध्रक, घोशा तथा वज्रमित्र राजा हुए. इस वंश का नोवाँ शासक भागवत या मागभद्र हुआ. वह शक्तिशाली राजा हुआ. इसके शासन के 14 वर्ष में तक्षशिला के यवन नरेश एनटीयालकीडस का राजदूत हेलिओडोरस उसके विदिशा स्थिति दरबार में उपस्थित हुआ था. उसने भागवत धर्म ग्रहण कर लिया तथा विदिशा में गरुड़ स्तंभ की स्थापना कर भागवत विष्णु की पूजा की.
पुराणों के अनुसार शुंग वंश का दसवां और अंतिम नरेश देवभूति था. उसने 10 वर्षों तक राज्य किया. वह अत्यंत विलासी शासक था. उसके कण्व अमात्य वसुमित्र ने उसकी हत्या कर दी. इस प्रकार शुग वंश का अंत हो गया.
शुंग वंश के राजाओं ने मगध सम्राज्य के केंद्रीय भाग की विदेशियों से रक्षा की तथा मध्य भारत में शांति और सुव्यवस्था की स्थापना कर विकेंद्रीकरण की प्रवृत्ति के कुछ समय तक रोके रखा.
शुंगकाल में समाज में बाल विवाह प्रचलित हो गया तथा कन्याओं का विवाह 8 से 12 वर्ष की आयु में किया जाने लगा. इस काल में पाटलिपुत्र, कौशांबी, वैशाली, हस्तिनापुर, वाराणसी तथा तक्षशिला प्रमुख व्यापारिक नगर थे.
राजाओं का काल वैदिक अथवा ब्राह्मण धर्म के पुनर्जागरण का काल माना जाता है. इसी समय समाज में भागवत धर्म का उदय हुआ. शुंग काल में संस्कृत भाषा का पुनरुत्थान हुआ. संस्कृत के पुनरुत्थान में महर्षि पंतजलि का प्रमुख योगदान था. पंतजलि ने पाणिनि के सूत्रों पर आधारित एक महाभाष्य लिखा.
महाभाष्य के अलावा मनुस्मृति का मौजूदा स्वरूप संभवत इसी युग में रचा गया था. कुछ विद्वानों के अनुसार शुंगकाल में ही महाभारत के शांतिपर्व तथा अश्वमेघ का भी परिवर्धन हुआ.
शुंग काल के सर्वोत्तम स्मारक स्तूप है. भरहुत, शांची, बेसनगर की कला भी उत्कृष्ट है. बोधगया के विशाल मंदिर के चारों ओर एक छोटी पाषण वेदिका मिली है, जिसका निर्माण शुंग काल में हुआ था. इस पर भी भरहुत के चित्रों के समान चित्रकूट फिर मिलते हैं.
इन उत्कीर्ण चित्रों में, राजा रानी, पुरुष, पशु, बोधि वृक्ष, कल्पवृक्ष, आदि प्रमुख है. एक चित्र में रथारूढ़ सूर्य तथा दूसरे में श्री लक्ष्मी का अंकन अध्याय कलापूर्ण है.
निर्देश : (प्र. 1-3) नीचे दिए गये प्रश्नों में, दो कथन S1 व S2 तथा…
1. रतनपुर के कलचुरिशासक पृथ्वी देव प्रथम के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौन सा…
आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएँगे की अपने डॉक्यूमेंट किससे Attest करवाए - List…
आज इस आर्टिकल में हम आपको Haryana Group D Important Question Hindi के बारे में…
अगर आपका selection HSSC group D में हुआ है और आपको कौन सा पद और…
आज इस आर्टिकल में हम आपको HSSC Group D Syllabus & Exam Pattern - Haryana…