आज इस आर्टिकल में हम आपको उत्तराखंड की जलवायु, वनस्पति, मिट्टियाँ और कृषि के बारे में बताने जा रहे है जिसकी मदद से आप आगामी एग्जाम की तैयारी आसानी से कर सकते है.
उत्तराखंड की जलवायु
इस क्षेत्र में धरातलीय संरचना के अनुरूप जलवायु की बहुत विभिन्नता पाई जाती है. दिन के समय गर्मी पड़ती है, किंतु रात को तापमान हिमांक से नीचे पहुंच जाता है। ग्रीष्म काल में घाटियों में 900 मीटर से नीचे की जलवायु उष्णकटिबंध तथा 4250 मीटर से ऊंचे स्थानों पर कड़ी ठंड पड़ती है व शिखर हिमाछादित रहती है। शीतकाल में घाटियों में सघन कोहरा रहता है। तेज हवाओं, अत्यधिक ठंड और हिमावरण के कारण ऊँचे भागों पर मरुभूमि मिलते हैं। मानसून जून से मध्य जून तक सक्रिय रहता है। अधिकतम वर्षा 1200 से 2100 मीटर ऊंचे पवनोन्मुख ढालों पर ओसतन 35 से 50 मीटर तथा विमुख ढालो पर 20 से 25 सेंटीमीटर होती है। जाड़ों में पश्चिम अवदाब के कारण हिमपात होता है।
वनस्पति
पौधों के जीवन पर ऊंचाई धूप और वायु के प्रभाव में स्थिति तथा वर्षा की मात्रा प्रभाव पड़ता है। वन स्थिति रिपोर्ट 2017 के अनुसार राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 45.43% (24, 295 वर्ग किलोमीटर) भाग पर वन है। इस क्षेत्र में वर्षा अधिक होती है, जिससे अधिकार क्षेत्र पर उपयोगी वन पाए जाते हैं जिनको मुख्यतः चार वर्गों में विभक्त किया जाता है-
उपोषण कटिबंधय वन
1200 मीटर से कम ऊंचाई पर मिश्रित वनों की ते हैं। इनमें पर्णपाती कंजु, साल, सेमल, हलदू, खैर व सिसू आदि वृक्ष मिलते हैं। नदियों के सहारे बेंत में बाँस अधिक मिलते हैं।
शीतोष्ण कटिबंधीय वन
1200 से 1800 मीटर तक की ऊंचाई तक शंकुधारी चीड़ तथा चौड़ी पत्ती के मिश्रित वनों के साथ घासों की प्रधानता है।
उपपर्वतीय वन
1800 मीटर से 3000 मीटर की ऊंचाई तक सिलवरफर, ब्लूपाइन स्प्रूस, साइप्रस, देवदार की प्रधानता है।
पर्वतीय वन
यहां ऊंचाई के अनुसार विविध किस्में मिलती हैं। 2000 से 3000 मीटर तक साइप्रस देवदार 2050 से 2600 मीटर, तक ब्लूपाइन व सिलवरफर तथा 2950 से 3600 मीटर तक रोडेंड्रोन बर्च की प्रधानता है। इसके ऊपर पर्वतीय चारागाह है।
उत्तराखंड वन स्थिति 2017
- आरक्षित वन – 69.86%
- रक्षित वन – 26.01%
- निजी वन – 4.13%
मिट्टियाँ
उत्तराखंड में मुख्यतः चार प्रकार की मिट्टियां पाई जाती है-
- शिवालिक तथा दून क्षेत्र में 300 से 900 मीटर की ऊंचाई तक काँप मिट्टियाँ मिलती है।
- भागीरथी अलकानंद के निचले बेसिन से 900 से 1800 मीटर की ऊँचाई कत्थई मिट्टियां पाई जाती है।
कृषि
उत्तराखंड कृषि की दृष्टि से अत्यंत पिछड़ा हुआ क्षेत्र है क्योंकि यहां पर खेती योग्य कुल भूमि 12.5% है। वर्तमान में कुल कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल 56.72 लाख हेक्टेयर है। कुल आबादी की 90% जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। भौगोलिक स्थिति ऐसी है जहां खेती करने में अनेक कठिनाइयाँ उत्पन्न होती है। पर्वतीय क्षेत्र होने की वजह से समतल भूमि का अभाव है। पहाड़ी ढालो पर सीडीनुमा कृषि की जाती है। यहां पर कृषि तीन प्रकार से खील भूमि पर फसलों के हेर फेर के द्वारा मडुआ कोदो और व चुआ आदि मोटे अनाज उगाए जाते हैं। उपरांव भूमि पर सोपान बनाकर बिना सिंचाई के ही मडुया व चुआ उगाए जाते हैं तथा तलाव भूमि पर सिंचाई द्वारा मुख्यतः धान उगाया जाता है। यहां के प्रमुख खाद्यान्न मोटे अनाज तथा ज्वार बाजरा, चावल गेहूं व जौ की भी कृषि सीमित क्षेत्रों में ही होती है यहां फल, सब्जी एवं दुग्ध उत्पादन की व्यापक संभावनाएं हैं। फलों के उत्पादन में उत्तराखंड का कश्मीर के बाद संपूर्ण भारत में द्वितीय स्थान है। उत्तराखंड में प्रति हेक्टेयर उपज कम है, इसलिए उत्पादन में वृद्धि करने की आवश्यकता है। पर्वतीय क्षेत्र की जलवायु का 1000 व 5000 फुट ऊंचाई वाला भागफल एवं बेल उगाने हेतु उत्तम क्षेत्र है। यहां फलों का व्यवसायिक उत्पादन एवं बागवानी हेतु अनेक सरकारी केंद्र स्थापित है।
प्रमुख फसलें
- गेहूं- देहरादून, ऊधम सिंह नगर, नैनीताल
- चावल- देहरादून
- चाय- नैनीताल, अल्मोड़ा व देहरादून
- संतरा- देहरादून, नैनीताल, अल्मोड़ा
- नींबू-नैनीताल, अल्मोड़ा
- लीची- देहरादून
- सेब- नैनीताल, अल्मोड़ा
सिंचाई
उत्तराखंड का पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण संपूर्ण कृषि भूमि पर सिंचाई उपलब्ध नहीं। जहां कहीं संभव है भूमि सींचने के लिए छोटी-छोटी वाहिकाएँ बनी है जिनको उत्तराखंड क्षेत्र में गूल कहते हैं। उत्तराखंड में 2015-2016 में सकल सिंचित क्षेत्र 540999 हेक्टेयर तथा शुद्ध सिंचित क्षेत्र 329837 हेक्टेयर है। पिघली हुई बर्फ को पानी लाती हुई नदियों के मार्ग में पत्थर के बड़े बड़े टुकड़े रखकर पानी को इन गुलों में मोड़ दिया जाता है। ये वाहिकाएँ समोच्च रेखाओं के सहारे बनती है। उत्तराखंड में नहरों की कुल लंबाई 11,664 किलोमीटर है तथा कहीं-कहीं कुओं द्वारा सिंचाई भी महत्वपूर्ण है। उत्तराखंड में कृषि योग्य भूमि का लगभग 1 लाख 15 हजार हेक्टेयर भाग सिचित है। उत्तराखंड में वर्तमान में कुल शुद्ध फसल क्षेत्रफल का केवल 12 प्रतिशत भाग पर ही सिंचाई की जाती है। प्रदेश में शुद्ध बोए गए क्षेत्रफल 698413 हेक्टेयर है तथा फसल क्षमता की कुल प्रतिशत 161% है।
विभिन्न स्रोतों द्वारा प्रदेश का शुद्ध सिंचित क्षेत्र
मद | 2015-16 |
नहर | 22.35% |
नलकूप | 51.98% |
कुआं | 17.42% |
तालाब | 0.04% |
अन्य | 8.21% |
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